T.n. Tiwari अंधभक्ति की मेरी आलोचना से सहमति का शुक्रिया. मैं स्पष्ट कर चुका हूं कि मैं एक प्रामाणिक नास्तिक हूं और किसी को भगवान नहीं मानता. जब भगवान कोई होता ही नहीं तो कैसे किसी को भगवान मान लूं या आपको ऐसी सलाह दूं. आदिमकाल में भगवान की अवधारणा की उत्पत्ति अज्ञात के भय और अज्ञान की उत्कंठा से हुई जिसकी भक्ति को संस्थागत रूप देने के लिए धर्म की स्थापना हुई. प्राचीन समाजों में पुजारी को उच्च स्थान प्राप्त था. अवशेष प्रमाण हैं. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 48000 पण वेतन पाने वाले 3 सर्वोच्च राज्य अधिकारियों में पुजारी भी शामिल है, यद्यपि धर्मशास्त्रों के विपरीत, अर्थशास्त्र परंपरा में शासनशिल्प धर्म से मुक्त है और राज्य की दैविक उत्पत्ति के सिद्धांत को खारिज करती है. जैसे जैसे समाजों में असमानता फैलती गयी और समाज वर्गों में बंटता गया, धर्म शासक वर्गों के आर्थिक-राजनैतिक-वैचारिक वर्चस्व का प्रभावी हथियार बनता गया. प्रत्यक्षस्य प्रमाणं किम्?
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भगवान के बारे में कुछ नहीं कह सकता हूँ वो नाराज हो जाते हैं । कभी 33 करोड़ हुआ करते थे अब 1 अरब से ऊपर हो गये हैं सुना हैं और उनमें से कुछ स्पेशियल भगवान हजार के आस पास जो बाकी भगवानो को चलाते हैं । मैं आस्तिक हुँ ।
ReplyDeleteGod bless you, if there is even one
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