क्यों होती है इंसान में
इतनी कमनिगाही
और इतनी छोटी याददाश्त
कैसे भूल जाता है वह इतनी जल्दी
नस्ल-ए-आदम के लहू का दरिया
और किनारे से जाते साफ दिखते
कातिल के पैरों के निशान
स्वागत करता है
ज़ुल्म के पुनरावृत्ति की
नहीं करता सिर्फ बर्दाश्त
क्यों कि
इतिहास कभी दुहराता नहीं खुद को
प्रतिध्वनित होता है
पुराने वायदों की
नयी पैकिंग-व्रैंडिंग करता है
फंसा लेता है फिर मायाजाल में
और फंसता है इंसान जान-बूझकर
गवाह बनता है
इंसानी जज़्बातों के नये कब्रगाह का
और पीड़ित भी बन जाता है सूत्रधार
मानवता के रक्तपात का
क्यों होती है इंसान में
इतनी कमनिगाही
और इतनी छोटी याददाश्त
(ईमिः 04.08,2014)
इतनी कमनिगाही
और इतनी छोटी याददाश्त
कैसे भूल जाता है वह इतनी जल्दी
नस्ल-ए-आदम के लहू का दरिया
और किनारे से जाते साफ दिखते
कातिल के पैरों के निशान
स्वागत करता है
ज़ुल्म के पुनरावृत्ति की
नहीं करता सिर्फ बर्दाश्त
क्यों कि
इतिहास कभी दुहराता नहीं खुद को
प्रतिध्वनित होता है
पुराने वायदों की
नयी पैकिंग-व्रैंडिंग करता है
फंसा लेता है फिर मायाजाल में
और फंसता है इंसान जान-बूझकर
गवाह बनता है
इंसानी जज़्बातों के नये कब्रगाह का
और पीड़ित भी बन जाता है सूत्रधार
मानवता के रक्तपात का
क्यों होती है इंसान में
इतनी कमनिगाही
और इतनी छोटी याददाश्त
(ईमिः 04.08,2014)
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