Sunday, July 13, 2014

संघी जमाती भाई भाई

संघी जमाती भाई भाई, देश तोड़ने निकले थे साथ
बुलंद हुए हौसले इनके, सिर पर था अंग्रेजी हाथ
लड़ते हैं ये नूरा कुश्ती, देते दो मुल्कों को मात
मॉफ करो हे पाठक भाई, है अब तीन मुल्क की बात
बनते बंदे अल्ला के खुद, करवाते भीषण रक्तपात
देख व्यापता लोगों में, जंग-ए-आज़ादी के जज़्बात
बौखला गये सब राजे-महराजे, बढ़ गया विक्टोरिया का रक्तचाप
आई उसके दिमाग में,  एक आजमाई तरकीब
 बना दो ज़िगरी दोस्तों को, एक-दूजे का जानी रक़ीब,
मिले उसे मुश्किल से यद्यपि, दो वफादार जुड़वे भाई
एक को थमाया शगूफा हिंदू राष्ट्र का, दूजे को नारा-ए-निज़ाम-ए-इलाही
रोक नहीं सके थे अंग्रेज बहादुर, आवामी जंग-ए-आज़ादी का उफान
खड़ा करवा दिया मगर. फिरकापरस्ती का हैवानी तूफान
मार दिया इंसानों ने, दो लाख से ज्यादा इंसान
समझ नहीं पाता यह कवि, क्या इससे भी बर्बर होते हैवान?
नापाक किए थे दरिंदे-मर्दों ने, कितनी ही मां-बहनों के दामन
तोड़ दिया था रत्ती-रत्ती, इंसानियत के सारे चिलमन
बांटा नहीं सिर्फ भूगोल, इतिहास भी इनने बांट दिया
एक से बने तीन मुल्कों को, फिरकापरस्ती का सौगात दिया
जब भी मचता है इन मुल्कों में, फिरकापरस्ती का चीत्कार
स्थायी भाव होता है उनका, महिलाओं का सामूहिक बलात्कार
तोड़ना ही है खूनी पंजा, सांप्रदायिकता के विचार का
मानवता के विरुद्ध,  दानवी अत्याचार का
वैसे मैं जानता हूं, इनके दिल का यह राज
मज़हब महज मुखड़ा है, मक्सद है तख्त-ओ-ताज़
बेच सकें थैलीशाहों को जिससे, ये मुल्क और समाज
दिखाते हैं आवाम को, खाली-पीली हेकड़ी
करते हैं हक़ीकत में, अमरीका की चाकरी
छिपकर ही नहीं, खुलकर भी दिखाते हैं वफादारी
अंबानी की ही नहीं, वालमार्ट की भी करते तामीरदारी
आइए हम मिलकर, मुल्क के लोगों को जगायें
इस मुल्क की धरती से, फिरकापरस्ती का भूत भगायें
जागेगा जिस दिन तंद्रा से, इस देश का आवाम
सांप्रदायिक साम्राज्यवाद का, कर देगा काम-तमाम
(ईमिः14.07.2014)

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