Thursday, July 24, 2014

नीरो -शिवसेना

 अगर वह मुसलमान न भी होता और रोजा न रखा होता तो भी किसी मजदूर के साथ किसी सांसद की यह मध्ययुगीन, वर्वर लंपटता क्षम्य है क्या? इस तरह के लंपट पहले राजनीतिकों के बाहुबली होते थे अब तख्तापलट हो गया है.

Narendra Kumar Singh Sengar   सही कह रहे हैं, मीडिया मजदूर की नहीं कारपोरेट की रिपोर्टिंग करता है लेकिन मीडिया के इसी चरित्र के चलते ये धमोंमादी लंपट सांसद बन गये है. जब रोम में गरीबी-भुखमरी सो लोग विद्रोह पर उतारू थे तो ध्यान बंटाने के लिए नीरो ने बगीचे में शहर के सेठों और विद्वानों तथा पादरियों की दावत का आयोजन किया. रोशनी के लिए जिल के कैदियों को जलाने का इंतजाम किया. नीरो तो नीरो ही था लेकिन नाच-गाने में मस्त उसके मेहमानों को भी नहीं नागवार गुजरा. इस संपट बिचारे के अलावा शिवसेना के बाकी सांसद और मीडियाकर्मी वहां नीरो के मेहमानों की भूमिका में थे.

सारे धर्मोंमादी नीरो और उसके मेहमान हैं, लेकिन धर्मोंमाद की संघी  समझ वैचारिक दिवालिएपन में लंपटता, हिंसा, लूट-पाट, बलात्कार के जरिए धर्मोंमाद फैालाकर सामंती ऐयाशी और कारपोरेटी दलाली को अंजाम देता है और इसी तरह का कुतर्क करता है. एक बार जनता जागेगी सभी नीरोओं और उसके मेहमानों की वही गति करेगी जो लुई -16 की हुई थी.

Kuldeep K Bhardwaj & Avdhesh Gupta  यूनिवर्सिटी की  डिग्री के बावजूद जन्म की जीववौज्ञानिक दुर्घटना से ऊपर उठने और धर्मनिरपेक्षता को खारिज करने में असमर्थ, तोते की तरह सूडो-सेकुलारिज्म का रट्टा मारने वाले पढ़े-लिखे जाहिलों से पूछता हूं कि असली स्कुलारिज्म क्या होती है? 2 कौड़ी के सड़कछाप गुंडों की तरह कैंटीन के कर्मचारी के साथ बद्तमीजी-बेहूदगी की शिवसेना मार्का लंपटता? और 2कौड़ी के सड़क छाप गुंडों की हरकत करने वाले इन "विधिवेत्ताओं" के समर्थकों केै लिए तो शायद कौड़ी से छोटी इकाई परिभाषित करनी पड़े. अरे बजरंगी जाहिलों, भेड़ और तोते से इंसान बनो. दिमाग मिला है उसे कष्ट दो नहीं तो बचा-खुचा भी नष्ट हो जायेगा. 

Anand Dubey  मित्र, कोई भी बलात्कार या अमानवीय लंपटता सदा निंदनीय है. रोजेदार बलात्कारी जेल में है और हिंदुत्व का ठेकेदार लंपट पुलिस सुरक्षा में. इस पोस्ट में  गिरोह बनाकर भारत के राष्ट्रवादी विधिनिर्माताओं की एक मजदूर के साथ मध्ययुगीन सामंती बर्बरता के लंपट आचरण और एक इज्जतदार मजदूर के सार्वजनिक अपमान की बात की गयी. सांप्रदायिक मानसिकता तर्क को कूड़ेदान में डालकर तोताकर्म में लीन हो जाती है. हर मजदूर इज्जतदार होता है, कम-सेकम उतना जितना कोई परजीवी नेता. जरा सोचिए ऐसे लंपट सांसद (और 2 दर्जन से अधिक आपराधिक मामलों का यह अभियुक्त इस शौर्यकर्म से मंत्री भी बन सकता है.) और मंत्री तथा उनके लटके-पटके ऐसे ही तालिबानी फौरी न्याय को अंजाम दिने लगें तो क्या होगा? इस मुल्क में मेहनतकश की इज्जत और ज़िंदगी महफूज रहेगी क्या?

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