हर रंग के पोंगापंथी-कठमुल्लों की सोच, रेखागणित की भाषा में समदृष्य (सिमिलर) नहीं, सर्वांगसम (कांग्रुयंट) त्रिभुजों सी है. धर्म की तिजारत करने वाले मानवता के इन दुश्मनों में से किसी का प्राचीनता या धार्मिकता से कुछ नहीं लेना-देना है, सभी पूंजीवाद की नाजायज औलादें हैं. नाजायज इसलिए कि कथनी-करनी के विरोधाभास के अपने दोगले चरित्र के चलते पूंजीवाद इन्हें पालता-पोषता जरूर है लेकिन विवेकसम्मत और अर्मनिरपेक्ष होने के घोषित दावों के चलते खुलकर अपनाता नहीं. धर्म को शासक वर्गों के हाथों में वर्चस्व को बरकरार रखने और जनवादी चेतना की धार को कुंद करने की फरेबी किन्तु प्रभावी विचारधारा मानने वाले हम नास्तिकों का दोनों से लेना-देना है, सामाजिक इतिहास (सोसल हिस्ट्री) के राजनैतिक इतिहास की वैज्ञानिक समझ के लिए.
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