Friday, July 18, 2014

क्षणिकाएं 28 (491-500)



491
संघी जमाती भाई भाई, देश तोड़ने निकले थे साथ
बुलंद हुए हौसले इनके, सिर पर था अंग्रेजी हाथ
लड़ते हैं ये नूरा कुश्ती, देते दो मुल्कों को मात
मॉफ करो हे पाठक भाई, है अब तीन मुल्क की बात
बनते बंदे अल्ला के खुद, करवाते भीषण रक्तपात
देख व्यापता लोगों में, जंग-ए-आज़ादी के जज़्बात
बौखला गये सब राजे-महराजे, बढ़ गया विक्टोरिया का रक्तचाप
आई उसके दिमाग मेंएक आजमाई तरकीब
 बना दो ज़िगरी दोस्तों को, एक-दूजे का जानी रक़ीब,
मिले उसे मुश्किल से यद्यपि, दो वफादार जुड़वे भाई
एक को थमाया शगूफा हिंदू राष्ट्र का, दूजे को नारा-ए-निज़ाम-ए-इलाही
रोक नहीं सके थे अंग्रेज बहादुर, आवामी जंग-ए-आज़ादी का उफान
खड़ा करवा दिया मगर. फिरकापरस्ती का हैवानी तूफान
मार दिया इंसानों ने, दो लाख से ज्यादा इंसान
समझ नहीं पाता यह कवि, क्या इससे भी बर्बर होते हैवान?
नापाक किए थे दरिंदे-मर्दों ने, कितनी ही मां-बहनों के दामन
तोड़ दिया था रत्ती-रत्ती, इंसानियत के सारे चिलमन
बांटा नहीं सिर्फ भूगोल, इतिहास भी इनने बांट दिया
एक से बने तीन मुल्कों को, फिरकापरस्ती का सौगात दिया
जब भी मचता है इन मुल्कों में, फिरकापरस्ती का चीत्कार
स्थायी भाव होता है उनका, महिलाओं का सामूहिक बलात्कार
तोड़ना ही है खूनी पंजा, सांप्रदायिकता के विचार का
मानवता के विरुद्धदानवी अत्याचार का
वैसे मैं जानता हूं, इनके दिल का यह राज
मज़हब महज मुखड़ा है, मक्सद है तख्त-ओ-ताज़
बेच सकें थैलीशाहों को जिससे, ये मुल्क और समाज
दिखाते हैं आवाम को, खाली-पीली हेकड़ी
करते हैं हक़ीकत में, अमरीका की चाकरी
छिपकर ही नहीं, खुलकर भी दिखाते हैं वफादारी
अंबानी की ही नहीं, वालमार्ट की भी करते तामीरदारी
आइए हम मिलकर, मुल्क के लोगों को जगायें
इस मुल्क की धरती से, फिरकापरस्ती का भूत भगायें
जागेगा जिस दिन तंद्रा से, इस देश का आवाम
सांप्रदायिक साम्राज्यवाद का, कर देगा काम-तमाम
(ईमिः14.07.2014)
492
आज भी चुभता है एहसास हर पहले चुंबन का
भूलता नहीं अनुभव मासूम दिलों के स्पंदन का
(ईमिः14.07.2014)
493
भारत रत्न है आपका, निशान-ए-पाकिस्तान भी
हैं अब दोनों ही निशानी अमरीकी मुसाहिदी की  
शिक्षिका के गुप्तांग में घुसेड़ता है जो पत्थर
भारत रत्नों से होता सुशोभित वह अफ्सर
निशान-ए-पाकिस्तान होता है उसके संग
इंसानियत पर करता जो ऐलान-ए-जंग
(ईमिः14.07.2014)
494
लफंगों की छेड़खानी तो समझ आती है, चरित्र प्रमाणपत्र देने लगें, ये तो हद है
बजरंगियों की उत्पात समझ आती है, वे कलम चलाने लगें, ये तो हद है
(ईमिः15.07.2014)
495
यह जंग नहीं जनसंहार है
वैसा ही जैसा हुआ था जर्मनी में, यहूदी बच्चों को साथ
झोंक दिये थे जब लाखों इंसान, हिटलर के रणबांकुरों ने
गैस की भट्ठियों में , मरने को घुट-घुट कर
जार जार कर दिया था दिल, सैलाब-ए-अश्क की उदासी ने.

यह जंग नहीं जनसंहार है
वैसा ही जैसा हो रहा है फिलिस्तीन में, फिलिस्तीनी बच्चों के साथ
अमरीकी शह के अहंकार की नेतानयाहू की मिशाइलों की बारिश में
घुट घुट कर मरते क्षत-विक्षत होते मासूम, नहीं जानते थे राज्य का चरित्र
या आतंकवाद की परिभाषा, न ही बम बनाने का फार्मूला
जार जार हो रहा है दिल, सैलाब-ए-अश्क की उदासी में.
यह जंग नहीं जनसंहार है
नाज़ी शिविरों से निकले यहूदी बच्चे, बना इज्रायल तो जवान हो गये
और बनाने लगे वैसे ही यातना शिविर, फिलिस्तीनी बच्चों के लिए
जैसा नाज़ियों ने बनाया था उनके लिए, और रंगने लगे अपने ही रक्त से हाथ
चलते हुए हिटलर के पदचिन्हों पर
घुट रहा है इतिहास और चरमरा रहा भूगोल, इंसानियत पर बमबारी से
जार जार हो चुका है दिल, सैलाब-ए-अश्क के सूख जाने से.

यह जंग नहीं जनसंहार है
उठ्ठेंगे अब एक साथ , यहूदी और फिलिस्तानी बच्चे
हिटलर के गैस चैंबरों, और मिसाइलमय गाज़ा के खंडहरों की
अपनी अपनी कब्रों से
 ये जवान बच्चे सीखेंगे मिसाइल का फार्मूला, और देंगे ईंट का दवाब पत्थर से
कायम है ग़र बल से गुलामी, लाज़िम है बल से उसका अंत
बाग बाग होगा तब दिल
इंसानियत की हसीन दुनिया के, सपनों के खुशगवार सैलाब-ए-अश्क में.
(ईमिः15.07.2014)
497
दिख ही जाता है मुखौटा और उसके पीछे छिपा असल चेहरा
सजग होते हैं जब विवेक-चक्षु
अच्छे लोग दिखते हैं वही जो होते हैं नहीं खर्चते ऊर्जा
दिखने में वो जो वे नहीं होते और कहलाते हैं अक्सर शिष्टों में अशिष्ट
परवाह नहीं होती उन्हें इस ठप्पे की
भारी पड़ता है गुमां नेकी का, अशिष्टता की बदनामी पर
जो अच्छा होता है, वह जानता है अच्छाई का मूल मंत्र
कि अच्छा करने से अच्छा बनता है, करता जाता है अच्छा
और बनता जाता है और अच्छा
वैसे तो वे भी जानते हैं यह मूलमंत्र, जो अच्छे नहीं होते
और इसीलिए करते हैं कोशिस वह दिखने की जो होते नहीं वे
लगाते जाते हैं मुखौटों पर मुखौटे, बुनते जाते हैं भेदों पर भेद
और फंसते जाते हैं खुद के बुने मकड़जाल में
लेकिन सक्षम है इंसान तोड़ने में कोई भी मकड़जाल
खोज सकता है रेगिस्तान में मोती, और निकाल सकता है पत्थर से पानी
(ईमिः15.07.2014)
498
बुरे लोग ही नाटक करते हैं अच्छे होने का
अच्छे लोग करते नहीं नाटक दिखने का वह
जो वे होते नहीं  वे
इसीलिए अच्छे होते हैं अच्छे लोग.
(ईमिः15.07.20140
499
भूल जाओ रटी-रटाई, नाना-दादाकी सुनी-सुनाई सीता-सावित्री-अनसूया की आदिम कहानियां
मिसालें हैं जो अनुनयन-अनुगमन-अनुशरण की, कुंद करती हैं नारी प्रज्ञा-पहल-आज़ाद-उन्नयन
बुनती हैं सती-सदाचार-आज्ञापालन का जाल, बताती हैं औरत को जूती-चेरी-भोग्या-पूज्या
आधी आबादी को अपंग बनाने का कमाल, रोकूंगा नहीं बच्चों को पढ़ने से ये आयतें
नहीं चूकूंगा देने से तटस्थ पठन की हिदायतें ,लिखी जा रही हैं अब नई कहानियां
आओ हम भी लिखें मलाला-मैत्रेयी-सिमन द बुऑओं की
हैं जो विवेक-अंतरात्मा से लैस  हाड़-मांस की संपूर्ण इंसान
मालिक हैं वे दिल की अपने कर सकती हैं मनचाहा प्यार
अब अगर कोई अज़ीज छाया  करना चाहे चुम्बनों की बौछार
भर लो आलिंगन में उसे करो उन्मुक्त प्यार
लड़ लेंगे उसके बाद मुक़दमा  सांस्कृतिक अपराध का
तुम्हारे अकाट्य हक़ीकी तर्कों से  लगेगा सांस्कृतिक सदमा
संस्कृति की अदालत के जजों को याद आंयेंगे उन्हें प्राचीन काल के सुकरात
लेकिन इतिहास दुहराता नहीं  प्रतिध्वनित होता है.
(अतुकांत के प्रयास में ज्यादा अतुकांत हो गया)
(ईमिः 16.07.2014)
500
नहीं जानता होती है कैसी आत्मा हिरण सी
तनती है भृकुटि तो
 चकित हिरणी सी लगती हैं तुम्हारी आंखें
(ईमिः16.07.2014)
501



















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