Friday, July 11, 2014

ईश्वर विमर्श 10

जी, मुन्नू लाल जी, यह (वोल्गा से गंगा) राहुल जी की 20 इतिहासपरक कहानियों का पठनीय संग्रह. बुद्ध के समय तक रिग्वैदिक आर्यों के वंशजों को लिपि ज्ञान नहीं था, ज्ञान की श्रुति और स्मृति परंपरायें थीं. यह अलगल शोध का विषय है कि हड़प्पा सभ्यता के लिपि ज्ञान का असर हमारे ऋग्वैदिक पूर्वजों पर क्यों नहीं पड़ा, अलग शोध का विषय है. समतामूलक, ऋग्वैदिक प्रकृतिवादी धर्म किन ऐतिहासिक कारणों-सोपानों से गुजर कर कर्मकांडी ब्राह्मण धर्म तक पहुंचा, एक अलग विमर्श का मुद्दा है. एक बात जो सर्वमान्य है (दक्षिणपंथियों में भी) वह यह है कि हमारे पूर्जजों को लिपिज्ञान बुद्धकाल के आसपास हुआ और पहला लिपिबद्ध ग्रंथ शोसक भाषा संस्कृत में न होकर आमजन की भाषा, पाली में लिखा गया. दूसरी यह कि जैन और बुद्ध दोनों आंदोलनो-दर्शनों-धर्मों का उदय ब्राह्मणवादी कर्मकांड के विरुद्ध विद्रोह और अनीश्वरवाद के रूप में हुआ.

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