Monday, July 14, 2014

यह जंग नहीं जनसंहार है

यह जंग नहीं जनसंहार है
वैसा ही जैसा हुआ था जर्मनी में
यहूदी बच्चों को साथ
झोंक दिये थे जब लाखों इंसान
हिटलर के रणबांकुरों ने
गैस की भट्ठियों में
मरने को घुट-घुट कर
जार जार कर दिया था दिल
सैलाब-ए-अश्क की उदासी ने.

यह जंग नहीं जनसंहार है
वैसा ही जैसा हो रहा है फिलिस्तीन में
फिलिस्तीनी बच्चों के साथ
अमरीकी शह के अहंकार केसाथ
नेतानयाहू की मिशाइलों की बारिश में
घुट घुट कर मरते क्षत-विक्षत होते मासूम
नहीं जानते थे राज्य का चरित्र
या आतंकवाद की परिभाषा
न ही बम बनाने का फार्मूला
जार जार हो रहा है दिल
सैलाब-ए-अश्क की उदासी में.

नाज़ी शिविरों से निकले यहूदी बच्चे
बना इज्रायल तो जवान हो गये
और बनाने लगे वैसे ही यातना शिविर
फिलिस्तीनी बच्चों के लिए
जैसा नाज़ियों ने बनाया था उनके लिए
और रंगने लगे अपने ही रक्त से हाथ
चलते हुए हिटलर के पदचिन्हों पर
घुट रहा है इतिहास और चरमरा रहा भूगोल
इंसानियत पर बमबारी से
जार जार हो चुका है दिल
सैलाब-ए-अश्क के सूख जाने से.

उठ्ठेंगे अब एक साथ
यहूदी और फिलिस्तानी बच्चे
हिटलर के गैस चैंबरों
और मिसाइलमय गाज़ा के खंडहरों की
अपनी अपनी कब्रों से
 ये जवान बच्चे सीखेंगे मिसाइल का फार्मूला
और देंगे ईंट का दवाब पत्थर से
कायम है ग़र बल से गुलामी
लाज़िम है बल से उसका अंत
बाग बाग होगा तब दिल
इंसानियत की हसीन दुनिया के
सपनों के खुशगवार सैलाब-ए-अश्क में.
(ईमिः15.07.2014)

No comments:

Post a Comment