जरा भी जिसके पास अकल थी उसे मालुम था अडानी-अंबानी का यह ज़रखरीद भारत को गुजरात बना देगा और अपने कारपोरेटी आकाओं के अच्छे दिन के लिए आवाम बेच देगा. जो अपनी अकल बेच पशुकुल में शामिल हो अच्छे दिन की हुंकार लगा रहे थे वे जाहिल भी इस बदहाली के लिए उतने ही जिम्मेदार हैं जितने हत्या-बलात्कार से सियासी सीढ़ियां चढ़ने वाले नरपिशाच शाह और मोदी. हिंदुस्तान में जाहिलों के काटजू के आंकड़ों से सहमति का मन करता है. झेलो अच्छे दिन पढ़े-लिखे जाहिलों. तुम तो झेल लोगे 65 रुपये खर्च कर गरीबी की रेखा पार कर जाने वालों के बारे में क्या कहोगे भारत के डिग्रीशुदा जाहिलों.
इस मंच पर बहुमत अच्छे दिन के पैरोकरों का था. झेलो अच्छे दिन आप तो 100रू किलो टमाटर और 100 रूपये की दाल फिल्म देखने का पैसा बचाकर खरीद लेंगे लेकिन गांव और शहर में क्रमशः 32 और 65 ऱूपये प्रतिदिन खर्च कर गरीबी रेखा पार करने वाले क्या करेंगे? अटल के यनडीए शासन में रेल का खान-पान अपने चहेते धनपशुओं को धन लेकर बेच दिया और प्लेटफार्म पर सस्ता स्वादिष्ट खान-पान के लाखों स्वरोजगारों को बेरोजगार तो कर ही दिया महंगे दाम में घटिया खाने का दाम दे पाने में असमर्थ लाखों गरीब यात्रियों मुंह बांध कर यात्रा करने पर भी मजबूर दिया.य़नडीए की यह कारपोरेटी-मोदी सरकार पूरा रेलवे ही बेचने की तैयारी कर रही है और बैंकों के निजीकरण की.अटल सरकार में विनिवेश मंत्री के तौर पर अरबपति जेटली 2009 के चुनाव की घोषणा के पहले औने-पौने दाम में सरकारी संपत्तियों को बाप की जागदीर समझ औने-पौने दाम में बेचने की जल्दी में था अब तो वित्त मंत्री है, 5 साल में देश बेच देगा. इतिहास न सिर्फ सांप्रदायिक हत्या-बलात्कार की सीढ़ियों से सियासती ऊंचाइयां चढ़ने वाले मोदियों और शाहों को आवाम के साथ गद्दारी का अपराधी ठहरायेगा बल्कि अच्छे दिनों का तोतारटंत करने वालों को भी (इस ग्रुप में पुष्पा और टीयन तिवारियों को खासकर). जरा भी जिसके पास अकल थी उसे मालुम था अडानी-अंबानी का यह ज़रखरीद भारत को गुजरात बना देगा और अपने कारपोरेटी आकाओं के अच्छे दिन के लिए आवाम बेच देगा. जो अपनी अकल बेच अच्छे दिन की हुंकार लगा रहे थे वे भी इस बदहाली के लिए उतने ही जिम्मेदार हैं.हिंदुस्तान में जाहिलों के काटजू के आंकड़ों से सहमति का मन करता है. झेलो अच्छे दिन. तुम तो झेल लोगे 65 रुपये खर्च कर गरीबी की रेखा पार कर जाने वालों के बारे में क्या कहोगे भारत के डिग्रीशुदा "ज्ञानियों"?.
इस मंच पर बहुमत अच्छे दिन के पैरोकरों का था. झेलो अच्छे दिन आप तो 100रू किलो टमाटर और 100 रूपये की दाल फिल्म देखने का पैसा बचाकर खरीद लेंगे लेकिन गांव और शहर में क्रमशः 32 और 65 ऱूपये प्रतिदिन खर्च कर गरीबी रेखा पार करने वाले क्या करेंगे? अटल के यनडीए शासन में रेल का खान-पान अपने चहेते धनपशुओं को धन लेकर बेच दिया और प्लेटफार्म पर सस्ता स्वादिष्ट खान-पान के लाखों स्वरोजगारों को बेरोजगार तो कर ही दिया महंगे दाम में घटिया खाने का दाम दे पाने में असमर्थ लाखों गरीब यात्रियों मुंह बांध कर यात्रा करने पर भी मजबूर दिया.य़नडीए की यह कारपोरेटी-मोदी सरकार पूरा रेलवे ही बेचने की तैयारी कर रही है और बैंकों के निजीकरण की.अटल सरकार में विनिवेश मंत्री के तौर पर अरबपति जेटली 2009 के चुनाव की घोषणा के पहले औने-पौने दाम में सरकारी संपत्तियों को बाप की जागदीर समझ औने-पौने दाम में बेचने की जल्दी में था अब तो वित्त मंत्री है, 5 साल में देश बेच देगा. इतिहास न सिर्फ सांप्रदायिक हत्या-बलात्कार की सीढ़ियों से सियासती ऊंचाइयां चढ़ने वाले मोदियों और शाहों को आवाम के साथ गद्दारी का अपराधी ठहरायेगा बल्कि अच्छे दिनों का तोतारटंत करने वालों को भी (इस ग्रुप में पुष्पा और टीयन तिवारियों को खासकर). जरा भी जिसके पास अकल थी उसे मालुम था अडानी-अंबानी का यह ज़रखरीद भारत को गुजरात बना देगा और अपने कारपोरेटी आकाओं के अच्छे दिन के लिए आवाम बेच देगा. जो अपनी अकल बेच अच्छे दिन की हुंकार लगा रहे थे वे भी इस बदहाली के लिए उतने ही जिम्मेदार हैं.हिंदुस्तान में जाहिलों के काटजू के आंकड़ों से सहमति का मन करता है. झेलो अच्छे दिन. तुम तो झेल लोगे 65 रुपये खर्च कर गरीबी की रेखा पार कर जाने वालों के बारे में क्या कहोगे भारत के डिग्रीशुदा "ज्ञानियों"?.
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