Friday, July 4, 2014

लल्ला पुराण 163 (नारी विमर्श 4)

Rajendra Kumar Jain  “गरीबी आदमियों के कपडे उतार लेती है
और अमीरी औरतों के ……!!!
हम लोग कई बार गैर इरादतन, स्वस्थ हास्य के भ्रम में कई विचारधारात्मक मिथकों का पोषण करते हैं, खासकर औरतों के बारे में.
दर-असल वे कपड़े उतारती नहीं, महंगे किफायती कपड़े पहनती है जोे एक तरफ नारी देह की कामोत्तेजक मर्दवादी अवधारणा और फिमेल सेक्सुअल्टी की विकृत मर्दवादी समझ के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन है तो दूसरी तरफ स्वतंत्र फिमेल सेक्सुअल्टी और देह की आज़ादी की अभिव्यक्ति. एक ऐसे समाज में जहां स्त्री का प्रणयनिवेदन इतना बड़ा अपराध है कि  नाक कान काटकर उसे सजा देने वाला आराध्य बन जाता है, यह एक प्रशंसनीय दुस्साहस है.
पुनश्चः यौन-उत्पीड़न की शिकार ज्यादातर महिलाएं(लड़कियां) गैरकिफायती कपड़े वाली और फ्राक पहनने वाली बच्चियां होती हैं.
पुनः पुनश्चः किफायती कपड़े वाली लड़कियां 3-5 करने वालों को छट्ठी का दूध याद दिला देती हैं.
पुनः पुनः पुनश्च
गरीबी की कीमत उस औरत से पूछिए
जिसने कीमत चुकाई है कपड़े उतार कर
(अदम गोंडवी के एक शेर का इम्प्रोवाइजेसन)

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