कुछ भी नहीं रहता वैसे ही बदलता सब वक़्त के साथ
नहीं होता वही दरिया करते हैं जब दुबारा पार
अंत निश्चित है सबका है जो भी अस्तित्ववान
कुछ भी नहीं साश्वत तब्दीली के सिवा
[ईमि/09.10.2013]
नहीं होता वही दरिया करते हैं जब दुबारा पार
अंत निश्चित है सबका है जो भी अस्तित्ववान
कुछ भी नहीं साश्वत तब्दीली के सिवा
[ईमि/09.10.2013]
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