Al Pandit जी हाँ, पंडित जी, मेरा नाम ईश है और मैं इस सुंदर नाम के लिए अपने धर्म परायण ब्राह्मण, पंचांगवेत्ता, कर्मकांडी दादा जी का कृतज्ञ हूं. मेरे बचपन की हर सुबह गीता और राम चरित मानस के श्लोक और दोहे-चौपाइयां जपते बीता. बहुत से श्लोक 13-14 साल तक कर्मकांडों की व्यर्थता समझ में आने लगी और जनेऊ से मुक्ति ले लिया और 17 साल में इलाहाबाद विवि पहुंचने तक भगवान और भूत के भय से. भगवान और भूत की काल्पनिक हक़ीकत समझ में आने के साथ नास्तिक हो गया जो कि आसान नहीं था. गीता मैंने एकाधिक बार पढ़ा है, पहले भक्ति भाव से फिर विवेक भाव से. अगर विमर्श करना है तो मुद्दों पर करें. मुझे यक़ीन है जो लोग गीता का दिव्य मानते हैं उन्होने या तो पढ़ा नहीं है और पढ़ा है तो भक्ताभाव से. चाहें तो उसकी विषय वस्तु पर बात करें, फतवे की शैली में नहीं. गीता बमें चिंतन-मुक्त कर्म का उपदेश देता है और चिंतन ही मनुष्य को अन्य जानवरों से अलग करता है.
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