Monday, October 14, 2013

वामपंथ का भूत.

प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई की दुहाई देना अमानवीय हिंसा का समर्थन है. १९८४ में भी राजीव गांधी नामक नर-अधम ने यही तर्क दिया था "बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही  है" वैसे तो आजतक पता नहें चल पाया कि इंदिरा गांधी की ह्त्या किसने की थी, राजीव गांधी द्वारा गठित ठक्क्कर आयोग ने जसे ही संदेह की सूई आरके धवन के तरफ घुमाया, राजीव गांधी ने उसका राजनैतिक निर्वासन ख़त्म करके राज्य सभा का सदस्य बना दिया. अगर इन्दिरा  गांधी के सिख बाड़ी गार्ड्स ने भी मारा था तो उन्हें तो तुरंत मार डाला गया, उसके बदले देश भर के सिखों को मारना और ज़िंदा जलाना, महिलाओं का बलात्कार और संपत्ति की लूट को आप कैसे उचित थारायेंगे. महात्मा गांधी को एक ब्राह्मण ने मारा था, देश भर के ब्राह्मणों को तो नहीं खोज कर मारा गया?? मुल्क में अशिक्षित लोग उतने खतरनाक नहीं है जितने असंख्य पढ़े-लिखे जाहिल.

एक लंबा कमेन्ट डिलीट हो गया. कुछ फिरकापरस्त लम्पटों के सर पर साम्यवाद का ऐसा भूत सवार रहता है की किसी बात पर अभुआने लगते हैं. इन्ही किसे ओजा के पास जाना चाहिए. वामपंथ के एबीसी से अनभिज्ञ इन लम्पटों को वामपंथ पर कुछ कहने को नहीं होता तो छद्म-छद्म चिल्लाने लगते हैं, आप असली बनो छद्म अपने आप दर किनार हो जाएगा. छद्म छद्म चिल्लाकर साम्प्रादायिक अपराध  के ये समर्तक उतने ही खतरनाक हैं जितने हत्यारे-बलात्कारी बजरंगी लम्पट.

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