वफ़ा
की उम्मीद
वफ़ा
की उम्मीद क्यों रखते हो मुझसे
विचारों
के मेल से ही मिला था तुझसे
निष्ठा
आज भी है उन विचारों में
नहीं
है रुचि रंग-विरंगी तस्वीरों में
नहीं
मानता मैं तर्कहीन भावुकता का सबब
मुहब्बत-ए-जहां
में ही
है मुहब्बत-ए-माशूक का अदब.
[ईमि/२४.१०.२०१३]
No comments:
Post a Comment