Pushpendra Mishra यात्रा 1818 से नहीं 5वीं शताब्दी ईशा पूर्व से जारी है, गुलामी खत्यूम हुई, यूनानी और रोमन साम्राज्यवाद समाप्त हुए, राजे-रजवाड़े धूल में मिल गए, ब्रितानी साम्राज्य हिंद महासागर में डूब गया, ज़ार की औलादों का कोई पता-ठिकाना नहीं है, अमेराकी साम्राज्यवाद की चूलां हिल रही हैं, ब्राह्मणवाद कहां गया? उस अमेरिका में जहां अश्वेतों को बस में बैठने का हक़ नहीं था, वहां एक अश्वेत ऱाष्ट्रपति बन गया..... ये परिवर्तन फिलहाल क्रमिक मात्रात्मक हैं, जिनकी क्रांतिकारी गुणात्मक तब्दीली में परिपक्व होना अवश्यवंभावी है. सफर लंबा है, मेजिल शोषण-विहीन मानव-मुक्ति अब दूर नहीं. दलाल मध्यवर्ग सबसे बड़ी रुकावट है, जिसे टूटना ही है.
Raghavendra Das Demolition of Berlin wall symbolizes collapse of distinction b/w capitalist and social imperialisms that has simplified the hostiles -- now the world is divided between two hostile camps the global imperialist and workers. People like you who by-and-large belong to broad category of working people in the sense of earning livelihood by selling the labor but owing to little bigger crumbs from the ruling classes harbor the illusion of being part of that and work as agents of the ruling classes whom Andre Gunter Frank calls the lumpen bourgeois shall be disillusioned soon or shall be crushed to dust. The future history belongs to the workers. Law of dialectics is continuous, evolutionary quantitative change destined to mature into revolutionary qualitative change. All the Dalit/Adivasi/Women's... Occupy movements are all part of broad class struggles. The most visible example of evolutionary, quantitative changes Com RLD are, from our student days to present, the Dalit scholarship and assertion and Feminist scholarship and assertion that will transform into revolutionary qualitative changes into end of casteism and patriarchy. And when the critical moment arrives you, the lumpen bourgeois would have no other option but to join your real class, the workers,. Live under the illusion of being the part of ruling class. दर-असल आप जैसे लोगों का हाल धोबी का कुत्ते जैसा है.
क्रांतिकारी हालात में मध्यवर्ग का चरित्र बदलता है और तब वो सर्वहारा रे साथ आएगा जैसा मैनें ऊपर लिखा. समाजवाद कभी ब्राह्ममणवादी नहीं होता उसके नेता जन्मना ब्राह्मण हो सकते हैं. मानव मुक्ति हर तरह के शोषण और वर्चस्व से. चीन और ऱूस की क्रांतियों के बाद राज्य पूंजीवाद की स्थापना हुई जो समाजवादी एजेंडा आगे बढ़ाने की बजाय पीछे ले गया. इतिहास में ऐसे उतार चढ़ाव आते हैं. भारत की मुख्यधारा की कम्युनस्ट पार्टियां चुनावी दलदल में ऐसी फंसी कि उनमें और अन्य पार्टियों कोई गुणात्मक फर्क नहीं रह गया. सीताराम येचूरी वैसे ही कम्युनिस्ट हैं जैसे मुलायम सोसलिस्ट. ल्किन यदि पूंजी के दलाल अपने को कम्युनिस्ट और सोसलिस्ट कहें तो यह कम्युनिज्मयसोसलिज्म की सैद्धांतिक विजय है. इतिहास को ज्योति। से नहीं जाना जाता, वह अपने गति के नियम खुद बनाता है, हम उस दिशा में अपने कर्म और वचन से य़ोगदान देते रहें. भविष्य की क्रातिय़ों के कार्यक्रम भविष्य की पीढ़ियां तय करेंगी.मानव-मुक्ति वर्गविहीन, राज्यविहीन समाज की स्थादना में ही संभव है, जिसका कोई टाइम टेबल नहीं बनाया जा सकता. सोपान-दर-सोपान मंजिल की तरफ बढ़ते रहना है. जनचेतना का विकास भौतिक परिस्थितियों के हिसाब से होता है. हजारों साल दलित और नारियां अमानवीय हालात में रहे, चेतना के अभाव में, अब हालात बदल रहे हैं.
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