एक संघी के वाम-विरोधी प्रलाप पर कुछ टिप्पणियांः
बहुत ही दयनीय समझ है आपकी, इतिहास की पूरी किताब पढ़ें एक पन्ना फाड़ कर नहीं. आप सुना है पत्रकार हैं, कुछ तथ्यान्वेषण और अध्ययन के आधार पर तथ्यों तर्कों के साथ खबर लिखें, अफवाहों-कहा सुनी और कुतर्क के आधार पर नहीं. हर युग में अवसरवादी होते रहे हैं और सत्ता के लाभ के तिए ज़मीर बेचते रहे हैं, कुछ छद्म कम्युनिस्ट भी इनमें हो सकते हैं.
जो कम्युनिस्टों को किसी का एजेंट बताते हैं वे पागल नहीं जाहिल और पूंजीवाद के दलाल हैं जै बिना तथ्य-तर्क के बकवास करते हैं औज संघी कुतर्क करते हैं. अगर कम्युनिस्टों का आधार नहीं है तो पूंजी के सारे दलालों को मस्त रहना चाहिए उनके सिर पर 24 घंटे कम्युनिज्म का भूत क्यों सवार रहता है. आज तक कोई संघी नहीं मिला जिसने फतवेबाजी और अनर्गल प्रलाप तथा गाली-गलौच के अलावा कोई तर्क-तथ्य की बात की हो. हम जमाती और संघी हर तरह के आतंकवाद के खिलाफ हैं. सीआरपीयफ के जवान माओवादियों को मारने जाते हैं और युद्ध में मारे भी जा सकते हैं और हां वे अपना दिमाग ताक पर रखकर कारपोरेटी दलालों के आदेश दर भाड़े के हत्यारों के रूप में गांव जलाते हैं, हत्या और बलात्कार करते हैं. कम्युनिस्टों को कतहों से पैसा मिलता है, इसका खुलासा करेंगे? हम व्यक्ति के लिए महीं अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए आवाज़ उठाते हैं. असहमति के बावजूद हम आपकी भी आज़ादी के लिए आवाज़ उठाएंगे. मिझे पता नहीं कि कंवल भारती वामपंथी थे कि नहीं सेकिन कोई भी स्वार्थी बिक सकता है, किछ जाहिल बिकते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता. कुछ तो इतने जाहिल होते हैं के चर्चा कुछ भी हो उनके सिर पर वामपंथ का भूत सवार हो जाता है.
दुनिया इतनी ही काली सफेद है, बाकी रंग भुलावा हैं. जो भी श्रम (भौतिक-बौद्धिक) से रोजी कमाता है वह कामगर(मजदूर) है और जो दूसरों के श्रम से मालामाल होता है वह पूंजीपति. बज़े टुकड़े पाने वोला कुछ श्रमिक अपने को शासक(पूंजीपति) वर्ग का हिस्सा मानने का भ्रम पालकर शोषकों की दलाली करते हैं उनको ऐंड्रे गुंटर फ्रैंक ने लंपट पूंजीपति (Lumpen bourgeois) कहा है. दलाल कामगरों का यह हिस्सा वर्गद्रोही होता है.
बहुत ही दयनीय समझ है आपकी, इतिहास की पूरी किताब पढ़ें एक पन्ना फाड़ कर नहीं. आप सुना है पत्रकार हैं, कुछ तथ्यान्वेषण और अध्ययन के आधार पर तथ्यों तर्कों के साथ खबर लिखें, अफवाहों-कहा सुनी और कुतर्क के आधार पर नहीं. हर युग में अवसरवादी होते रहे हैं और सत्ता के लाभ के तिए ज़मीर बेचते रहे हैं, कुछ छद्म कम्युनिस्ट भी इनमें हो सकते हैं.
जो कम्युनिस्टों को किसी का एजेंट बताते हैं वे पागल नहीं जाहिल और पूंजीवाद के दलाल हैं जै बिना तथ्य-तर्क के बकवास करते हैं औज संघी कुतर्क करते हैं. अगर कम्युनिस्टों का आधार नहीं है तो पूंजी के सारे दलालों को मस्त रहना चाहिए उनके सिर पर 24 घंटे कम्युनिज्म का भूत क्यों सवार रहता है. आज तक कोई संघी नहीं मिला जिसने फतवेबाजी और अनर्गल प्रलाप तथा गाली-गलौच के अलावा कोई तर्क-तथ्य की बात की हो. हम जमाती और संघी हर तरह के आतंकवाद के खिलाफ हैं. सीआरपीयफ के जवान माओवादियों को मारने जाते हैं और युद्ध में मारे भी जा सकते हैं और हां वे अपना दिमाग ताक पर रखकर कारपोरेटी दलालों के आदेश दर भाड़े के हत्यारों के रूप में गांव जलाते हैं, हत्या और बलात्कार करते हैं. कम्युनिस्टों को कतहों से पैसा मिलता है, इसका खुलासा करेंगे? हम व्यक्ति के लिए महीं अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए आवाज़ उठाते हैं. असहमति के बावजूद हम आपकी भी आज़ादी के लिए आवाज़ उठाएंगे. मिझे पता नहीं कि कंवल भारती वामपंथी थे कि नहीं सेकिन कोई भी स्वार्थी बिक सकता है, किछ जाहिल बिकते हैं और उन्हें पता भी नहीं चलता. कुछ तो इतने जाहिल होते हैं के चर्चा कुछ भी हो उनके सिर पर वामपंथ का भूत सवार हो जाता है.
दुनिया इतनी ही काली सफेद है, बाकी रंग भुलावा हैं. जो भी श्रम (भौतिक-बौद्धिक) से रोजी कमाता है वह कामगर(मजदूर) है और जो दूसरों के श्रम से मालामाल होता है वह पूंजीपति. बज़े टुकड़े पाने वोला कुछ श्रमिक अपने को शासक(पूंजीपति) वर्ग का हिस्सा मानने का भ्रम पालकर शोषकों की दलाली करते हैं उनको ऐंड्रे गुंटर फ्रैंक ने लंपट पूंजीपति (Lumpen bourgeois) कहा है. दलाल कामगरों का यह हिस्सा वर्गद्रोही होता है.
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