बहुत पुरानी बात है. मैं 13-14 साल का था और लगभग हर शनिवार की रात, स्टेसन से 7 मील दूर रास्ता भुलाने की महारत वाले छितुनिया के पास से होते हुए निडर घर जाता था. हमारे कुछ खेत घर से थोड़ी दूर नदी के किनारे है. उन्हीं मे से एक की मेड़ पर गूलर के एक पेड़ पर हमारे एक पूर्वज "बुढ़वा बाबा" की आत्मा का वास बताया जाता है. उस खेत में कभी-कभी मक्का बोया जाता था और मचान पड़ता था. रात में वहां मेरे पिता जी ही सोते थे, उनका "rapport" बाकी भूतों की तरह बिढ़वा बाबा से भी ठीक था. बताते थे कि वे आकर उनसे सुर्ती मांगते-खाता और गप्पें करते. एक दिन जब वे नहीं थे मैं चोरी से मचान पर सोने गया और रात भर बुढ़वा बाबा को अगोरा, मगर, निराश सुबह, दिन निकलने के पहले ही घर आ गया.
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