ख्वाहिश तो मेरी भी है तेरे साथ चलने की
दो कदम ही नहीं, लंबा सफर करने की
पहन ली हैं तुमने मगर बेड़ियां पाजेब समझ कर
रस्मो-ओ- रिवाज़ की तहजीब समझकर
करना है अगर विचरण मेरे साथ उन्मुक्त
तोड़ कर बंधन-ओ-बेड़ियां करो पैरों को मुक्त
[ईमि/16.10.2013]
दो कदम ही नहीं, लंबा सफर करने की
पहन ली हैं तुमने मगर बेड़ियां पाजेब समझ कर
रस्मो-ओ- रिवाज़ की तहजीब समझकर
करना है अगर विचरण मेरे साथ उन्मुक्त
तोड़ कर बंधन-ओ-बेड़ियां करो पैरों को मुक्त
[ईमि/16.10.2013]
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