महाकाव्य इतिहास नहीं फिक्सन होता है, मान्यवर. लेकिन फिक्सन कोरी कल्पना नहीं होता, वास्तविकता का ही अमूर्तिकरण होता है. फिक्सन से इतिहास समझने के लिए उसके demystification की आवश्यकता होती है. मुझे लगता है,रामायण समतामूलक बौद्ध अभियान से डावांडोल हो रहे वर्णाश्रम की पुनर्स्थापना का प्रयास था. वही बात कम-ओ-बेस रामचरितमानस के बिरे में भी कही जा सकती है. 11वीं-12वीं शताब्दी तक इस्लाम के आगमन के बाद आर्थिक रूप से स्वावलम्बी शिल्प और उद्यम से जुड़ी जातियां वर्माश्रम धर्म की सामाजिक-दासता से मुक्ति की तलाश में इस्लाम की तरफ पलायन कर रहीं थीं तब तुलसी जी ने मानस की रचना किया और मर्यादा पुरुषोत्तम को भगवान बना दिया. कोई भी रचना महज़ स्वांतः सुखाय नहीं होती.
रामायण और रामचरितनस को ऐतिहासिक बताना एक ऐतिहासिक साजिश है. राम किसी किंवदंती पर आधारित, वर्णाश्रमी पित्रिसत्तात्मकता का कल्पित चरित्र है जो वर्णाश्रम की ऐतिहासिक आवश्यकताओं के अनुसार वाल्मीकि के मर्यादा पुरुषोत्तम से विष्णु के अवतार तक की यात्रा करता है और रामानंद सागर के सोप ओपरा का नायक बनता है. .
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