मेरे गांव में बचपन में मेरे पिताजी समेत कई लोग भूतों से मुलाकात और संवाद की कहानियां सुनाते थे. कई कहानियां हैं, कभी फिर्सत में सुनाऊंगा. हमारे विस्तृत खानदान में एक सार्वभौमिक अइया(दादी) थीं जिनके पास भूतों चुड़ैलों से संवाद की अनंत कहानियां थीं. एक बार मैंने कहा, " अउया, हमरा के कोहें ना भुतवा-चुरैलिया डरउतैं?" उन्होने कहा, "जे मनबै न करे ओका कैसे डरइहैं " मैंने कहा कितना आसान है, डरना बंद कर दो. एक थोड़ा लंबी कहानी है, जिसमें पूरे गांव ने एक पुराने ज़मींदार की हवेली से भूत निकलते देखा था,बाद में
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment