Friday, October 25, 2013

वफा

वफा तो कभी सीखा ही नहीं
दूंगा मगर यारी को पूरा सम्मान
बार बार काटता हूं राह तेरी
देखता नहीं मगर हुस्न का अभिमान
हा हा
 [ईमि/October 26, 2013]

बात तो मैं जमाने की ही कर रहा था
 ज़फा-ओ-वफा के विमर्श में 
तुम्हारा ज़िक्र एक इत्तेफाक था
 [ईमि/October 26, 2013]

No comments:

Post a Comment