अति सरलीकरण, भाग्यशाली हैं कि जहां, जब, जिस सांस्कृतिक परिवेश में पैदा हुए, लड़की नहीं लड़का पैदा हुए। मैं अपनी बेटियोंऔर छात्राओंको कहता हूं/था कि तुम लोग सौभाग्यशाली हो कि एक-दो पीढ़ी बाद पैदा हुई। लेकिन जिस आजादी और अधिकार का सुख तुम ले रहे हो वह खैरात में नहीं मिली, खैरात मेंकुछ नहीं मिलता, हक के एक एक इंच के लिएलड़ना पड़ता है, तुम्हारी आजादी और अधिकार पिछली पीढ़ियों के सतत संघर्ष का नतीजा है। बाबाआदम के जमाने की बात नहीं है, 1982 की बात है। मेरी बहन ने 8वीं पास किया तो घर वालों की तरफ से उसकी पढ़ाई खत्म, गांव के नजदीक कोई हाई स्कूल नहीं था। शादी खोजने की तैयारी शुरू हो गयी। मैं जोएनयू में शोध-छात्र था। छुट्टी में घर गया और जानकर स्तब्ध रह गया। बाहर रह कर उसकी पढ़ाई के अधिकार के लिए पूरे खानदान से भीषण संघर्ष करना पड़ा। लड़कियों के मामले में खानदान कुछ ज्यादा ही बड़ा हो जाता है। खैर मैं भी मैं ही था। कोई मूल प्रशन पूछ ही नहीं रहाथा कि तुम खुद ही नालायक हो इसका पढ़ाई का खर्च कौन देगा? 'ये होजाएगा-वो हो जाएगा'। क्या हो जाएगा? कोई नहीं बता रहा था, जैसे इस ग्रुप में कुछ लोग बैत बेबात वाम वाम करनै लगते हैं, बताते नहीं, वाम क्याहोता है? मैं उसे सबकी इच्छा के विरुद्ध राजस्थान में लड़कियों के स्कूल-कम-यूनिवर्सिटी, वनस्थली विद्यापीठ में ले जाकर एडमिसन करा दिया, जहां सेउसनेएमए बीएड की पढ़ाई की। आज स्त्री-प्रज्ञा तथा दावेदारी के अभियान के परिणामस्वरूप वे हर क्षेत्र मेंलड़कों से आगे निकल रही हैं। शाहीन बाग से शुरू हुआ नये नवजागरण की वही नायिका हैं। स्त्री प्रज्ञा और दावेदारी के अग्रगामी अभियान का नतीजा यह हैकि किसी बाप की औकात नहीं है कि सार्वजनिक रूप से कहे कि वह बेटी-बेटा में फर्क करता है, एक बेटे के लिए5 बेटियांभले पैदाकर ले। माफ कीजिएगा, बुढ़ापे में इतना भावुक नहीं होना चाहिए। मेरी बहन हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करने वाली मेरे गांव की पहली लड़की है। अभी वह दिल्ली के एक नामी स्कूल में पढ़ाती है। जब तक विचारधारा के रूप में मर्दवाद ध्वस्त नहीं हो जाता, नारीवाद प्रासंगिक बना रहेगा।
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