Bharti Panchal, Bhagat Singh, Ranjit Kaur, Ruchi Bharti, 2012 में इलाहाबाद विवि के एक ग्रुप में किसी ने ऐसी ही एक पोस्ट डाला एक लड़की किफायती कपड़ों में एक लड़की की तस्वीर के साथ, यह कहते हुए कि एक साहित्यिक पत्रिका के जिल्द पर वह तस्वीर छपी थी और लारी प्रतियां बिक गयीं। उस पर मैंने एक कविता 'चौथी सदी ईशा पूर्व' और एक लंबा कमेंट लिखा था, कमेंट ब्लॉग में किस शीर्षक से सेव किया याद नहीं आ रहा है। कविता मिल गई है, उसे शेयर कर रहा हूं, फिर एक छोटा कमेंट लिखता हूं। मर्दवाद (जेंडर) कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं है, बल्कि विचारधारा है तथा विचारधारा पीड़ित और उत्पीड़क दोनों को प्रभावित करती है, इसलिए कुछ महिलाएं भी इसके प्रभाव में हों तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। हमारी लड़ाई मर्दों से नहीं, मर्दवाद की विचारधारा से है।
यह तस्वीर आज के संदर्भ में न तो अश्लील है न ही कामुक। वैसे सेक्सुअल्टी की अभिव्यक्ति की आजादी न तो अश्लील है न ही बलात्कार (शाब्दिक या दैहिक ) का आमंत्रण। लड़कियों के पहनावे को बलात्कार या छेड़खानी का कारण मानने वाले साड़ी और बुर्केकी स्त्रियों के या नाबालिग बच्चियोंसे छेड़खानी या बलात्कार का क्या तर्क देंगे। तस्वीर जैसे परिधान मेंतो आजकल बहुत सी लड़कियां कॉलेज मेंदिखती हैं और उनसे कोई भी अपनी पैंट गीली करने का रिस्क लेकर ही बदतमीजी कर सकता है। कट्टरपंथी कठमुल्ले ऐसे परिधान की हिमायत करते हैं कि स्त्री शरीर का कम-से-कम हिस्सा दिखे, उपभोक्ता संस्कृति के विज्ञापन ऐसा परिधान प्रदर्शित करते हैंकि कम-से-कम छिपे। दोनों की सोच का श्रोत एक ही है -- स्त्री शरीर की कामुकता (सेंसुअसनेस) की अवधारणा। 9-10 साल पुरानी बात होगी। 'हॉट पैंट' के शुरुआती दिन। मेरी एक बहुत प्रिय स्टूडेंट थी, नाम से फर्क नहीं पड़ता। मैं एक ऑप्सनल कोर्स पढ़ाता था, पोलिटिकल इकॉनॉमी। उसने वह ऑप्सनल लिया नहीं था, लेकिन क्लास में नियमित रहती। मेरे पेज.रैडिकल पर उसके साथ तस्वीर है। शब्द टोन और कोनोटेसन से अर्थ ग्रहण करते हैं। मैंने उससे एक दिन पूछा कि उसके पास उससे छोटे शॉर्ट नहीं हैं? उसने कहा, "No Sir, This is not shorts, but hot pants". तभी मुझे यह नाम पता चला। मेरा लड़कियों के किफायती कपड़ों का विश्लेषण यह है: 1. यह स्त्री शरीर की आजादी की अभिव्यक्ति है; 2. यह स्त्री शरीर की कामुक अवधारणा के विरुद्ध प्रोटेस्ट है; 3. यह स्त्री सेक्सुअल्टी की जेंडर्ड (मर्दवादी) सोच के विरुद्ध प्रोटेस्ट तथा स्वतंत्र स्त्री-सेक्सुअल्टी की दावेदारी की अभिव्यक्ति है। इस पर 8 साल पुराना एक लंबा लेख कभी खोजकर शेयर करूंगा। बाकी हमारी सोच की एक खास ढंग की आदत होती है, आदत बदलना मुश्किल होता है।
यह तस्वीर आज के संदर्भ में न तो अश्लील है न ही कामुक। वैसे सेक्सुअल्टी की अभिव्यक्ति की आजादी न तो अश्लील है न ही बलात्कार (शाब्दिक या दैहिक ) का आमंत्रण। लड़कियों के पहनावे को बलात्कार या छेड़खानी का कारण मानने वाले साड़ी और बुर्केकी स्त्रियों के या नाबालिग बच्चियोंसे छेड़खानी या बलात्कार का क्या तर्क देंगे। तस्वीर जैसे परिधान मेंतो आजकल बहुत सी लड़कियां कॉलेज मेंदिखती हैं और उनसे कोई भी अपनी पैंट गीली करने का रिस्क लेकर ही बदतमीजी कर सकता है। कट्टरपंथी कठमुल्ले ऐसे परिधान की हिमायत करते हैं कि स्त्री शरीर का कम-से-कम हिस्सा दिखे, उपभोक्ता संस्कृति के विज्ञापन ऐसा परिधान प्रदर्शित करते हैंकि कम-से-कम छिपे। दोनों की सोच का श्रोत एक ही है -- स्त्री शरीर की कामुकता (सेंसुअसनेस) की अवधारणा। 9-10 साल पुरानी बात होगी। 'हॉट पैंट' के शुरुआती दिन। मेरी एक बहुत प्रिय स्टूडेंट थी, नाम से फर्क नहीं पड़ता। मैं एक ऑप्सनल कोर्स पढ़ाता था, पोलिटिकल इकॉनॉमी। उसने वह ऑप्सनल लिया नहीं था, लेकिन क्लास में नियमित रहती। मेरे पेज.रैडिकल पर उसके साथ तस्वीर है। शब्द टोन और कोनोटेसन से अर्थ ग्रहण करते हैं। मैंने उससे एक दिन पूछा कि उसके पास उससे छोटे शॉर्ट नहीं हैं? उसने कहा, "No Sir, This is not shorts, but hot pants". तभी मुझे यह नाम पता चला। मेरा लड़कियों के किफायती कपड़ों का विश्लेषण यह है: 1. यह स्त्री शरीर की आजादी की अभिव्यक्ति है; 2. यह स्त्री शरीर की कामुक अवधारणा के विरुद्ध प्रोटेस्ट है; 3. यह स्त्री सेक्सुअल्टी की जेंडर्ड (मर्दवादी) सोच के विरुद्ध प्रोटेस्ट तथा स्वतंत्र स्त्री-सेक्सुअल्टी की दावेदारी की अभिव्यक्ति है। इस पर 8 साल पुराना एक लंबा लेख कभी खोजकर शेयर करूंगा। बाकी हमारी सोच की एक खास ढंग की आदत होती है, आदत बदलना मुश्किल होता है।
No comments:
Post a Comment