Saturday, February 1, 2020

लल्ला पुराण 249 (भगत सिंह-सावरकर)

एक सज्जन ने गांधी के बलिदान दिवस की एक पोस्ट पर भगत सिंह को न बचाने का गांधी पर आरोप लगाया, मैंने कहा भगत सिंह के बम फेंकने से अंग्रेज उतने आतंकित नहीं थे, जितने उनके विचारों से, वे जेल की यातना से टूट कर सावरकर की तरह अंग्रेजोंके पेंसनयाफ्ता नहीं बने। उन्होंनेकहा कि अंग्रेजों के चमचे और भी थे सावरकर ही क्यों याद आए? उस पर दो कमेंट--

शासक बंदूक से अधिक कलम से डरता है। सत्ता का भय होता है विचारों का आतंक। भगत सिंह के विचारों से आतंकित थे सावरकर को पेंसन देने वाले अंग्रेज शासक। सुकरात हों या भगत सिंह, शासक विचारक को मारकर सोचता है विचारों के आतंक से बच जाएगा, लेकिन विचार तो मरते नहीं फैलते हैं और इतिहास रचते हैं।

जी हां और लोग भी अंग्रेजों के वफादार थे, सावरकर इसलिए याद आ गए कि वे उनके प्रतिनिधि थे, सावरकर को 1907 तक के उपनिवेश-विरोधी जीवन की सजा मिली जिससे वे टूटकर औपनिवेशिक सरकार के पेसनयाफ्ता वफादार बन गए, भगत सिंह नहीं टूटे और फांसी का फंदा चूमकर शहीदेआजम बन गए। भगत सिंह सांप्रदायिकता के धुर विरोधी थे तथा सावरकर प्रवर्तक थे। आप या तो भगत सिंह के अनुयायी हो सकते हैं या सावरकर के।

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