एक सज्जन ने एक पोस्ट लिखा कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट हिंदू धर्म की आलोचना करते रहे अन्य धर्मोंकी नहींजिसके विरुद्ध जनाक्रोश से वे गायब हो गए और भाजपा सत्ता हासिल कर सकी। उस पर:
यह पोस्ट सांप्रदायिक अफवाह है। सारे धर्मांध अपने धर्म को महान और दूसरे धर्मोंको गलीच साहबित करने की कोशिस करते हैं। कुरीतियों के परोक्ष पक्षधर वही तर्क देते हैं जो एक चोर देता है कि मैं ही नहीं, वह भी चोर है। एक चोर की निंदा में दूसरे चोर का समर्थन नहीं है बल्कि दूसरे की चोरी की बात से चोर अपने ऊपर चोरी के आरोप को हल्का करना चाहता है। एक लंबी प्रजाति है जो लिखे पर तो बात नहीं करेगा, सवाल पूछेगी कि इस पर क्यों नहीं लिखते? उस पर आप लिखें और राय मांगे। बचपन से सांप्रदायिकता के लंबरदारों से अल्पंख्यक तुष्टीकरण की बकवास सुनता आया हूं। चुनावी जनतंत्र में सभी बहुसंख्यक तुष्टीकरण करते हैं। गुजरात चुनाव में राहुल गांधी जनेऊ दिखाते मंदिर मंदिर घूम रहे थे तो दिल्ली चुनाव में जयश्रीराम के जवाब में केजरीवाल जयब जरंगबली का भजन गा रहे थे। गुजरात नरसंहार के बाद के चुनाव में किसी पार्टी ने नरसंहार को प्रत्यक्ष मुद्दा नहीं बनाया। भाजपा ने बाबर की औलादों को धक्का देने से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का अभियान शुरू किया तो राजनैतिक जाहिल राजीव गांधी ने मंदिर का ताला कुलवाकर जमीन अधिग्रहण किया, मेरठ-मलियाना-हाशिमपुरा कराया। दुश्मन के मैदान में उसी के हथियार से लड़ना चाहते थे। तुष्टीकरण का कुतर्क अपनी सांप्रदायिक पक्षधरता को छिपाने का आधार बन गया, कई बार कुतर्क का बहुमत तर्क पर भारी पड़ता है, जैसे प्रचीन एथेंस की न्यायिक सभा में सुकरात के तर्कों पर कुतर्क का बहुमत भारी पड़ गया था। मेरी समझ में, आपकी हिंदू धर्म के खिलाफ पक्षपात शिकायत जिसके चलते भाजपा मजबूत हो रही है, वैसा ही कुतर्क है, जिसका बहुमत तर्क पर भारी पड़ सकता है।
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