Tuesday, February 4, 2020

मार्क्सवाद 201 (अराजकतावाद)

अराजकतावाद एक ऐतिहासिक वाम विचारधारा है जिससे शेखचिल्ली (यूटोपिय) समाजवाद की उत्पत्ति हुई जो द्वंद्वात्मकता के अभाव में वैज्ञानिक समाजवाद से भिन्न है। 1871 की पेरिस कम्यून के विद्रोह के ज्यादातर नेता अराजकतावादी थे। 1886 में शिकागो केऐतिहासिक मजदूर आंदोलन के नेतृत्व मेंभी बहुमत अराजकतावादियों का था। वाम पर विमर्श में एक संक्षिप्त अंश मैंने अराजकतावाद पर लिखा था।

भारतीय महापुरुषों में गांधी जी खुद को अराजक मानते थे, उनका आदर्श प्रबुद्ध अराजकतावाद था जिसमें किसी भी तरह की सत्ता की जरूरत नहीं होगी, लेकिन उस स्तर के प्रबोधन के अभाव में वे व्यवस्थित अराजकतावादवाद के हिमायती थे जो राज्य केउनके समकेंद्रीय सामुद्रिक वृत्त के सिद्धांत में परिलक्षित होता है। कुछ अराजकतावादी बुद्धिजीवी-नेताओं के जीवन काफी रोचक हैं। इनमें प्रमुख हैं फ्रांसीसी चिंतक पीटर जोसेफ प्रूदों जिनका एक उद्धरण "जो भी मुझ पर शासन का हाथ रखता है, वह एक निरंकुश, लुटेरा है, मैं उसे अपना शत्रु घोषित करता हूं", अराजकतावाद को परिभाषित करता है। प्रूदों ने मार्क्स केसर्वहारावादी दर्शन का मजाक बनाने के लिए एक किताब लिखा, 'गरीबी कादर्शन' जिसके जवाब में मार्क्स की कालजयी कृति आयी, 'दर्शन की गरीबी'। 'राज्य और अराजकता' तथा 'ईश्वर और राज्य' के रचइता एक रईश रूसी परिवार में पैदा हुए मिखाइल बकूनिन पीटर्सबर्ग और बर्लिन से पढ़ाई कर फ्रांस चले गए। 1848 में पौलैंड पर रूसी कब्जे का विरोध करनेके लिए वहां से निकाल दिए गए। चेक विद्रोह के समर्थन केचलते ड्रेस्डेन में गिरफ्तार हुए और रूस डिपोर्ट कर दिए गए। कुछ वर्ष विभिन्न जेलोंमें बिताने के बाद साइबेरिया निर्वासित कर दिए गए। वहांसे भागकर जापान होते हुए अमेरिका पहुंचे और फिर इंग्लैंड। 1868 में 'फर्स्ट इंटरनेसनल' में शामिल हुए तथा मार्क्स केसाथ मतभेद के चलते 1872 में अलग हो गए। एक अन्य महत्वपूर्ण अराजक थे रूस के ही प्रिंस पीटर क्रोपोत्कीन जिनकी पुस्तक 'पारस्परिक सहयोग (मुचुअल एड ) विकास के प्रतिस्पर्धा के पूंजीवादी सिद्धांत को चुनौती देती है। (24 साल पहले कोई यह पुस्तक मुझसे पढ़ने के लिए ले गया और लौटाया नहीं) । समय मिलातो कभी इन पर लिखूंगा। कुलीन परिवार की सुख-सुविधाएं छोड़कर जार प्रशासन में नौकरी करते हुए साइबेरिया में कई भौगोलिक खोजें की, क्रांतिकारिता के चलते 1874 में गिरफ्तार कर लिए गए और 2 साल बाद भागने में सफल रहे और बाकी 41 साल निर्वसन में गुजारे, कई देशों में इन पर मुकदमे चले।

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