Monday, February 3, 2020

बेतरतीब 58 (शाहीन बाग)

कल Markandey Pandey जी ने एक पत्रकार मित्र की शाहीन बाग यात्रा की काफी भयावह तस्वीर पेश की कि कैसे कैसे उनकी जांच और तहकीकात हुई, उन्हें कितनी मुसीबतें झेलनी पड़ीं। मैं 3 बार पहले जा चुका था 2 बार जेएनयू के मित्रों के साथ एक बार डीयू के एक मित्र के साथ। आज हमें जनहस्तक्षेप के साथियों के साथ जाना था। पहले मैं गाड़ी से गया था और जामिया से शाहीनबाग पुलिस बैरीकेड तक काफी समय लग जाता था। उस तरफ तरफ से कोई चेकिंग और छान-बीन नहीं थी। छोटे छोटे समूहो में लड़के लड़कियां गीत गा रहेथे और आजादी के नारे लगा रहे थे। आज मैं लिए मेट्रो से गया। जशोला-शाहीनबाग मेट्रो स्टेसन से धरना स्थल 700-800 मीटर दूर है। धरना स्थल के पहले पुलिस बैरीकेड था तो अदर जाकर गली से निकलना होता है। असामाजिक तत्वों को रोकने की औपचारिकता में 2-3 लड़के और 2-3 लड़कियां. सम्मान के साथ चेकिंग की औपचारिकता निभा रहे थे। बस स्टैंड लाइब्रेरी तथा पुस्तक-बिक्री स्थल। लाइब्रेरी में हम जनहस्तक्षेप के पहले के पोस्टर (गोरख, पाश, सर्वेश्र दयाल सक्सेना, नाजिम हिकमत, फैज की कविताओं के) देखकर खुश हुए। उसके पहले मंच व्यवस्था की एक लड़की ने मेरा नाम लिख कर बताया कि 3-4 वक्ताओं के बाद हमें बोलना है। हम (मैं तथा जनहस्तक्षेप के पत्रकार मित्रगण -- राजेश, पार्थिव, अनिल दूबे, परमानंद आगे आ गए वहां अन्य लोगों के साथ दिवि के पुराने और मशहूर प्रो. मनोरंजन मोहंती और उनकी पत्नी दिख गए। मैं मोहंती साहब को पीछे मंच की तरफ ले गया जहां व्यवस्थापिकाओं ने हमें बैठा लिया। मोहंती साहब को जल्दी निकलना था, इसलिए आग्रह पर उन्हे बोलने के लिए पहले बुला दिया। मंच के सामने पंडाल में करीब 3000-4000 महिलाएं-लड़कियां बैठी और लगभग इतने-ही स्त्री-पुरुष पंडाल के बाहर खडे थे। जल्दी ही मुझे भी बोलने को पुकारा गया। मैंने समयांतर के फरवरी अंक में अपने लेख में देश के विभिन्न शहरों में फैलते शाहीनबाग के विचार को एक नयानवजागरण बताया है, मैंने अपने संबोधन में इस नवजागरण में शिरकत में मौका देने के लिए शुक्रिया अदा किया। मंच व्यवस्थापिकाएं बार बार आग्रह कर रहीथीं कि कोई वक्ता मंच से किसी को अपना फोन नंबर न दे, कोई किसी तरह का नकदी न दे न ही उनका कोई बैंक-खाता है। जैसे ही कोई वक्ता जरा भी कोई धार्मिक बात कहता व्यवस्था संभाल रही लड़कियां माइक से अन्यथा मंच पर जाकर उन्हें रोकतीं. यह कहकर कि यह सेकुलर मंच है, गांधी, अंबेडकर और मौलाना आजाद के आदर्शों पर ही वे बात करें।
यह वाकई एक नया नवजागरण है जिसकी बागडोर बहादुर लड़कियों ने संभाल रखा है, शाह-मोदी-योगी और सारी संघी मंडली सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के नापाक इरादे से इसे हिंदू-मुस्लिम नरेटिव में फिट करने की भरपूर कोशिस मेंहैं लेकिन शाहीन बाग की बहादुर आंदोलनकारियों और दिल्ली के आवाम ने अभी तक तो इसे नाकाम किया है। जामिया और शाहीन बाग में गोलीबारी से उनका मनोबल टूटा नहीं और मजबूत हुआ है।

2 comments:

  1. गोदी मीडिया के इतर शाहीन बाग में चल रहे संविधान बचाओ देश बचाओ आंदोलन के सच को लिखने के लिए बहुत धन्यवाद एवं आभार

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