हिंदू-मुस्लिम नरेटिव से जो लोग फिरकापरस्ती का जहर बोरहे हैं उनको करारा जवाब है, शाहीन बाग। वहां हिंदू-मुसलमान नहीं इंसानों का जमावड़ा है। शाहीन बाग स्त्री-स्तंत्रता की छत्र-छाया में एक नए नवजागरण का आगाज है, शाहीन बाग हिंदू-मुसलमान से इंसान बननेकी आवाज है, सामासिक संस्कृति का इंकलाब है। वैसे हिंदू तो कोई होता ही नहीं कोई ब्राह्मण होता है कोई दलित। पाकिस्तान मेंजो अल्प संख्यकों के साथ हो रहा था यहां भी आतताई वही कर रहे हैं। 85% को 14% काडर दिखाना फासीवादी मुहरा होने की प्रवृत्ति है। सादर। एक बार हो आइए, दिल्ली में न हों तो अपनेशहर के शाहीन बाग ही हो आइए, धीरे धीरे हर शहर में पहुंच रहा है शाहीन बाग, एक जगह से एक विचार बन गया है शाहीन बाग।
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