एक ने लिखा कि शाहीन बाग में लंगर चलाने वाले सिख की दुकान मुसलमानों ने जला डाली, दूसरे ने उन्हे खालिस्तानी घोषित कर दिया और यह कि उन्हें खालिस्तान (?) से करोड़ो मिल चुके हैं, उस पर:
दंगे सरकार द्वारा प्रायोजित थे, जैसा कई वीडियो में दिख रहा है, पुलिस की देख-रेख में हुए। दोनों समुदायों की तरफ से हिंसा हुई, हमेशा की तरह हत्या और आगजनी केशिकार मुसलमान ज्यादा हैं। लेकिन अफवाहें बहुत उड़ रही हैं। आईटी सेल का अफवाह ब्रिगेड बहुत कर्मठ है। एक ही अफवाह शब्दशः तमाम जगहों पर सुनाई देती हैं। 2002 में गुजरात में गोधरा, आनंद, वड़ोदरा हर जगह एक अफवाह सुनने को मिली कि कल्लोल जिले में एक गांव (नाम भूल रहा है, रिपोर्ट देखनी पड़ेगी) में एक तालाब के किनारे 3 हिंदू औरतों की लाशें पाई गयीं जिनके स्तन कटे थे। ऐसी खबरें बहन-बेटियों की इज्जत के नाम पर फैलाई जाती हैं। हम लोग उस गांव में पहुंचे तो पता चला वह केवल पटेलों का गांव है और उस गांव में कोई तालाब नहीं है। हुआ यह था कि एक गुजराती अखबार ने यह खबर छाप दी और नीचे छोटा सा नोट कि प्रेस में जाने तक खबर की पुष्ट नहीं हो सकी है। दंगों में अफवाहें अहम भूमिका अदा करती हैं। दंगाई अफवाह यह भी है जो श्रीवास्तव जी फैला रहे हैं कि लंगर वाले सरदार जी खालिस्तानी हैं।
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