पीओके पर कब्जा करने या लाहौर पर बमबारी के नारों से अखंड भारत नहीं बन सकता। सीमा के दोनों ही तरफ की जनतांत्रिक ताकतें बंटवारे को गलत मानतती हैं और लोगों-से लोगों के बीच सौहार्द के अनेक मंच भी हैं, उन्हीं में इंडो-पाक मैत्री मंच है
जिसके कई सदस्य इलाहाबाद के हैं। तीनों मुल्कों की एकता लोगों के मिलने सेै होनी चाहिए युद्धोंमाद से नहीं। कश्मीर, पंजाब और बंगाल की विभाजक रेखाएं मिटनी चाहिए लेकिन दोनों देशों के हुक्मरान ऐसा नहीं चाहेंगे क्योंकि यही बंटवारा उनकी सियासी रोटी-पानी का श्रोत है। वैसे भी अखंड हिंदु राष्ट्र वाले ऐसा कभी नहीं चाहेंगे क्योंकि मुस्लिम आबादी 14 से 40 फीसदी हो जाएगी और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से सत्ता हासिल करना असंभव हो जाएगा। दिल्ली चुनावों में वे इसमें अंशतः ही सफल रहे, अपने वोट का प्रतिशत तो बढ़ा ले गए लेकिन विधान सभा में बहुमत नहीं पा सके।
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