Ramadheen Singh जी, अग्रज, आज़मगढ़ के महिमामंडन में, (शायद राजनैतिक कारणों से) सबाना और कैफी के नाम भूल गये?डाकुओं और बाहुबली नेताओं के योगदान(?) की फेहरिस्त तो याद रही लेकिन आज़मगढ़ को शिक्षित करने में, राजसमर्थक सर सैय्यद के मुस्लिम शिक्षा के अलीगढ़ अभियान के जवाब में राष्ट्रीय शिक्षा अभियान के तहत सिबिली नेशनल कॉलेज के संस्थापक, सिबिली का नाम तो भूलना ही था. यह भी भूल गये कि गांधी-नेहरू-पटेल आज़मगढ़ यात्रा में सिविली क़लेज में ही रुकते थे. शायद राजनैतिक गणनाओं के चलते, आज़मगढ़ की सामासिक संस्कृति की मिशाल देना उचित नहीं समझा. उल्लेखनीय है कि स्थापना के ऐतिहासिक कारणों से, आर्थिक-सांस्कृतिक-बौद्धिक रूप से संपन्न संतुलित हिंदू-मुस्लिम आबादी वाले इस शहर में दंगों का कोई इतिहास नहीं रहा है. न 1947 में बंटवारे के धमोंमाद में न 1992 के रामोंमाद में. यह भी उल्लेखनीय 2000 तथा 2002 में बजरंगी लंपटों से सिबिली कॉलेज में तोड़-फोड़ और ऱाष्ट्रीय ध्वज के अपमान की अफवाहों से भाजपा सरकार के मंत्री (बाद में बसपा सरकार के मंत्री, और बाद में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में, अभी शायद जमानत पर होंगे) रंगनाथ मिश्रा की शहर की सामासिक संस्कृति मिटाने की साजिश को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली. 2008 में भाजपा सांसद आदित्यनाथ द्वारा रमजान में मुस्लिम मुहल्लों से उन्मादी नारों के जुलूस के बाद जनसभा में आजमगढ़ को आतंकगढ़ की घोषणा से उत्पन्न तनाव को आजमगढ़ की सद्बुद्धि ने विकराल रूप लेने से रोक दिया. बिकी हुई मीडिया एक धर्मोन्मादी-दंगाई नेता की बकवास बिना छान-बीन के ले उड़ी. पुलिस ने आजमगढ़ के लड़कों की धर-पकड़ और मुठभेड़ शुरू कर दी. बटाला मुठभेड़ में मारा गया 17 साल का संजरपुर का खूंखार आतंकवादी पढ़ाई करने पहली बार रेल में बैठकर 1 महीने पहले ही दिल्ली गया था. यह भी उल्लेखनीय कि उसे लगी 6 गोलियों में, मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टों के अनुसार, 3 सिर में ऊर्ध्वाधार लगी थीं. मीडिया ने आजमगढ़ का नाम बदल दिया. आजमगढ़ का बताने पर लोग उत्सुक भाव से देखने लगे (वह भी दाढ़ी के साथ). लेकिन इसकी सामासिक सांस्कृति के बुनियाद इतनी मजबूत है कि दीवारों में दरारें तो पड़ गयीं, लेकिन इमारत सलामत है, माटी में समाहित सामासिक संस्कृति की सद्बुद्धि दरारें पाट देंगी. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की इसी छोटी सी दरार के चलते 2009, लोक सभा चुनाव में भाजपा पहली बार बसपा-सपा प्रशिक्षित रमाकांत यादव को उम्मीदवार बना कर यहां से जीत दर्ज़ कर सकी. यह भी उल्लेखनीय है कि बहुत से जनपक्षीय सांस्कृतिक, मानवाधिकार, राजनैतिक, बौद्धिक मंचों पर भी जिले के बहुत से लड़के-लड़कियां तथा मेरे जैसे बुड्ढों का सक्रिय दखल है. यह अलग बात है कि हम जिलों-सूबों-देशों की सीमाओं को नहीं मानते क्योंकि जन्म का भूगोल तथा सामाजिकअर्थशास्त्र महज जीववैज्ञानिक संयोग है. लेकिन आजमगढ़ का जीवट तथा इसकी सद्बुद्धि सामासिक संस्कृति की मिशाल के तौर पर इसकी मौजूदगी बरकरार रखेंगे. सादर.
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