जौनपुर से इलाहाबाद की तुलना में बनारस ज्यादा नजदीक पड़ता है और बैलगाड़ी की रफ्तार से चलने वाली एजे की तुलना में तेज एमएल (मुगलसराय-लखनऊ) तथा एमएफ (मुगलसराय-फैजाबाद) जैसी पैसेंजर -लोकल गाड़ियों के अलावा कई मेल और एक्सप्रेस गाड़ियां भी हैं तथा बस में भी कम समय लगता है। बस सिविल वाले मामले में इलाहाबाद का नाम 20 है। हम तो 1972 की जुलाई में घर से निकले थे बनारस जाने के लिए, जौनपुर में मन बदल गया और इलाबाद की बस पकड़ लिए। उस समय सिविल नहीं आईएएस का गढ़ माना जाता था। मेरे बगल के बगल में कायस्थों के गांव से एक आईएएस हो भी चुकेथे। लेकिन एक ही साल मेंमेरा मन बदल गया और आईएएस का ख्याल छोड़कर क्रांति के बारे में सोचने लगा। किसान पिता को पता चला कि बेटा कलेक्टरी का इरादा छोड़ दिया है तो बाप-बेटे में मतभेदिक विवाद होना लाजमी था और मैंने पिताजी से पैसा लेना बंद कर गणित की आमदनी से खर्च चलाने लगा। (1976 में भूमिगत रहनेकी संभावनाएं तलाशने दिल्ली आनेके बाद मिलाकर) अगले 12 साल तक गणित की आमदनी से ही काम चलता रहा। उस समय ↑सिविल" की उम्र निकल जाने पर अक्सर लोग एजी ऑफिस में चले जाते थे।
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