मित्रवर Raj K Mishra ने एक पोस्ट में कुसदस्यों द्वारा ग्रुप में विमर्श की स्तरीयता पर रंज का जिक्र किया, उस पर अपना कमेंट शेयर कर रहा हूं।
किनको रंज है मुझे नहीं पता, मैं देश-दुनिया और करीबियों के हालात से क्षुब्धता से अशांत (disturbed) मानसिक स्थिति के चलते कुछ नया गंभीर लिख नहीं रहा हूं, लेकिन जब भी हिंदी या अंग्रेजी में कुछ गंभीर लेख पोस्ट करता हूं 2-3 लाइक मिलते हैं, कमेंट या तो कोई करता नहीं या बिना पढ़े लेख के विषय से इतर वामपंथ और सेकुलरिज्म के 'कुकृत्यों' अपरिभाषित अभुआहट के कमेंट दिखते हैं या अपरिभाषित राष्ट्रद्रोह के लाक्षण। असहमति के विचारों का तार्किक खंडन के बजाय प्रत्यक्ष-परोक्ष बेहूदे निजी आक्षेप कई सक्रिय सदस्यों (पूछने पर नाम बता सकता हूं) की प्रवृत्ति बन गयी है। जिन लोगों की जातीय अस्मिता उनके सरनेम से नहीं जाहिर होती कुछ लोग अपने शोध से उनकी जाति पताकरके अवमाननापूर्ण निजी जातिवादी आक्षेप करते हैं। कुछ तथाकथित सम्मानित सदस्यों की चांपने-पेलने-लतियाने-पिछवाड़ा लाल करने की गुंडे-मवालियों की भाषा निश्चित रूप से इवि की शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर पर सवाल उठाती है। मैं फेसबुक पर कम समय दे पा रहा हूं लेकिन यदा-कदा ऐसे कमेंट. पोस्ट रिपोर्ट करता हूं। मॉडरेटर होने के नाते मैं ऐसे कमेंट डिलीट करके एडमिन समूह के जवाबदेही का पात्र बनने की जहमत उठा सकता हूं लेकिन जनतांत्रिक कार्यपद्धति के तकाजे के तहत ऐसा करता नहीं। कई लोग बात-बेबात राष्ट्रवाद, देशद्रोह, वामपंथ, सनातन शब्दों का भजन गाते रहते हैं। इन अवधारणाओं पर गंभीर विमर्श के लिए मैंने कई बार पोस्ट पोस्ट किया लेकिन या तो लोग विमर्श में शामिल नहीं हुए या निजी आक्षेप के विषयांतर से विमर्श विकृत करने लगे। कई करीबियों के असमय महामारी के मुंह में समा जाने की खबरों से मन के व्यथित होने से कलम में जंग सा लग गया है, छुड़ाने की कोशिस में हूं। आइए इस ग्रुप को सामाजिक सरोकारों पर गंभीर विमर्श का सार्थक मंच बनाने का सामूहिक प्रयास करें। ऊपर के कमेंट में परोक्ष रूप से किसी जादो जी को याद करने का स्तरीय काम करके सम्मानित सदस्य ने अपना स्तर प्रदर्शित किया है।
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