Monday, May 10, 2021

शिक्षा और ज्ञान 304 (1857)

 1857 की एकताबद्ध सशस्त्र किसान क्रांति से सहमे औपनिवेशिक शासकों ने आवाम की एकता तोड़ने के लिए धार्मिक आधार पर बांटो और राज करो की नीति अपनाया उसके लिए दोनों समुदायों के प्रतिक्रियावादी तत्वों को पटाना शुरू किया और उन्हें आपस में एक दूसरे के खिलाफ भड़काना शुरू किया। इन प्रतिद्वंदी औपनिवेशिक दलालों ने खुद को संगठित रूप देना शुरू किया। मुस्लिम लीग का गठन 1906 में हुआ और हिंदू महासभा का 1915 में। दोनों में जो बात साझा थी वह था राष्ट्रीय आंदोलन का विरोध। औपनिवेशिक शासन की शह पर एक ने भारतीय राष्ट्रवाद के विरुद्ध निजाम-ए-इलाही का नारा बुलंद किया, दूसरे ने हिंदू राष्ट्र का। इन विभाजनकारी ताकतों के निरंतर विषवमन के फलस्वरूप देश का अनैतिहासिक बंचवारा हुआ जिसके घाव नासूर बन अब तक रिस रहे हैं। यदि देश का बंटवारा न होता तो इस्लाम के नाम पर न पाकिस्तान बन पाता न भारत में हिंदुत्व की ताकतें सत्ता हासिल कर पातीं। सोचिए यदि सिंधिया, पटियाला, निजाम जैसे भारतीय शासकों ने किसान क्रांति के विरुद्ध अंग्रेजों का साथ न दिया होता तो किसान क्रांति की सफलता के साथ 1857 में ही औपनिवेशिक शासन का अंत हो जाता और इतिहास अलग होता। ऊपर और नीचे के कमेंट बॉक्स में मेरे 30 साल पहले लिखे लेख पढ़ें तो आभार होगा।

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