विजयोपरांत राज्य स्थापित करने वाले शासक को मैक्यावेली सलाह देता है कि उसे सबसे अधिक सजगअपने पुराने सहयोगियों से रहना चाहिए, खासकर खुद को किंगमेकर समझने वालों से. जो सहयोगी से दरबारी बनकर फर्शी बजा रहे हैं उनके दिमाग में भी फर्शी लगाने की बजाय सिंहासन पर बैठने का ख्याल आएगा ही. सबसे पहले इन्हें किनारे करने की कोशिस करनी चाहिए, चाहे जितने भी छलकपट, धोखाधड़ी और फरेब करना पड़े क्योंकि साध्य की सुचिता होती है साधन की नहीं. मोदी ने पार्टी के अंदरूनी दावेदाररों को विजय के पहले ही किनारे लगा दिया. अकेले मोदी जी ही राष्ट्रीय नेता हैं, बाकी सब -- पूर्व अध्यक्ष और राजग शासनकाल मेँ किसी ज्योतिषी खे कहने पर प्रधानमंत्री बनने के लिए इलाहाबाद के बाल्टी बाबा को टेंडर देने वाले, प्रोफसर मुरली मनोहर जोशी, 1984 में सिखविरोधी नरसंहार द्वारा निर्मित उंमाद के ध्रुवीकरण से राजीव गांधी की अभूतपूर्व सफलता से प्रेरित, शिलापूजनों और रथयात्रा से मुल्क के माहौल को सांप्रदायिकता से विषाक्त कर शासक बनने का सपना दिखने वाले और 2002 में अपने चहेते मोदी की कवच बन बाजपेयी के राजधर्म को फिसड्डी की तरह मसल देने वाले, पूर्व अध्यक्ष आडवानी, अपने को बाबरी विध्वंस की नायिका मानने वाली उमा भारती, अपने को बीजेपी का विचारक मानने वाला जेटली, उप्र में प्रदेश से देश के नेता की कतार में लगे कलराज मिश्र, केशरीनाथ त्रिपाठी .... समेत सभी नेताओं को अपने चुनाव क्षेत्रों में सीमित कर दिया. देश का दौरा सिर्फ एक नेता कर रहा है. अंदरखाने की खबर है कि अमित शाह इनमें से जोशी और केसरीनाथ समेत कइयों को हराने की जुगाड़ में है. इसमें राजनाथ सिंह की मिलीभगत का शक है जिससे भाजपा का ब्राह्मण कैडर बदले गाज़ियाबाद से भागकर लालजी चंडन को विस्थापित कर लखनऊ से लड़ने वाले राजनाथ को हराने की जुगाड़ में है. जोशी द्वारा मोदी लहर केखंडन का अपमान वह भूल नहीं पाया है और न ही जोशी भूल पोए हैं विस्थापन का अपमान. मोदी ने मैक्यावली पढ़ा नहीं अपने किसी अधकचरी जानकारी वाले सलाहकार की सलाह पर चल रहा है इस लिए जिस काम की सलाह मैक्यावली विजय के बाद करने की देता है, मोदी जी ने पहले ही शुरू करके राह दुरूह कऱ लिया. बाबरी विध्वंस के नायक आडवाणी का अभियान जनता ने रोक दिया और गठबंधन की मजबूरी में बाजपेयी के सिर पर ताज़ चला गया.(यह कमेंट तो बढ़ता जा रहा है)
Friday, April 30, 2021
मोदी और मैक्यावली
मोदी ने मैक्यावली की रचनाएं तो पढ़ा नहीं होगा लेकिन आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की बुनियाद रखने वाले मौक्यावली नवजागरण काल क्लासिक, "Prince" आज लिख रहे होते तो मोदी उनके ज्वलंत, जीवंत, जीवित माॉडल होते. मैक्यावली का समकालीन जीवित मॉडल था कार्डिनल सीजर बोर्जियाज जो बाद में पोप अलेक्ज़ेंडर षष्टम बना और जिससे घणतांत्रिक फ्लोरेंस की चांसरी के सेक्रेटरी के रूप में अपने रोम प्रवास के दौरान कई बार मिल चुके थे और चर्च की राजनैतिक सत्ता के विस्तार के लिए उसकी क्रूरताओं के प्रत्यक्षदर्शी थे. सीजर की अपनी जेल थी, जल्लाद और पेशेवर हत्यारे थे तथा ज़हरनवीश थे. बाद की कोटि के कारिंदों की व्यस्तता इनमें सर्वाधिक थी. मैक्यावली लिखते हैं कि सीजर ने लोगों के साथ धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं किया और इसके लिए उसे समुचित अवसर भी मिलते रहे, जिसे वह निहायत खूबसूरती से (मैग्नीफिसेंटली) अंज़ाम देता था. मैक्यावली सीजर बोर्जियाज का प्रशंसक था तो उसके बेटे का महिमा-मंडन करता था जो क्रूरता और धूर्तता में अपने बाप का भी बाप था. बाप के उत्तराधिकारी बनने के अभियान में उसने अपने भाई और बहनोेई को टपकवा दिया क्योंकि पोप एक-दो बार जब रोम से बाहर गया तो अपनी बेटी को चार्ज देकर गया था. मैक्यावली को उसके आपराधिक कृत्यों से कोई परेशानी नहीं थी बस एक ही शिकायत थी कि फरेब में अतिआत्मविश्वास जनित शिथिलता के कारण बाप की मौत के बाद पोप नहीं बन पाया.
30.04.2014
......जारी
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प्रोफेसर नहीं हो सके, रीडर के पद से रिटायर हुए (शायद)। इस कुंठा में वह जब मानव संसाधन मंत्री बने तो कॉलेजों में प्रोफेसरशिप खत्म कर दिया और दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ कॉलेजों के प्रोफेसरों से रिटायर होने के बाद प्रोफेसरशिप के लाभ वापस वसूले गए। शिक्षक भी वह अच्छे नहीं थे, अपनी प्रैक्टिकल की क्लासों में अपने निक्करधारी मूर्ख शोधछात्रों को भेजते थे। मैं तब विद्यार्थी परिषद में था और उनके धतकर्म सतकर्म लगते थे। अडवाणी ने जिसे सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करना चाहा, उसने उनको ही सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर फेंक दिया और नई सीढ़ियां बनवा ली।
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