Monday, May 10, 2021

लल्ला पुराण 373 (भाषा की तमीज)

Shashi K Chaturvedi आप का आभारी हूं कि मेरी पोस्ट पर नहीं आते। मैं कभी अमर्यादित भाषा का प्रयोग नहीं करता अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने वालों से भाषा की तमीज का श्रोत पूछ लेता हूं। आपको भी बहुत बार यही सलाह दिया कि सांप्रदायिक नफरत का विषवमन करने और आईटी सेल का रटाया भजन गाने की बजाय विवेकशील इंसान की तरह तर्क-तथ्यपरक बातें करें। मुझे ब्राह्मण परिवार में पैदा होने का कोई पछतावा नहीं है क्यों कि कौन कहां पैदा हो गया उसमें उसका न तो योगदान है न अपराध। बाभन से इंसान बनना जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से ऊपर उठकर विवेक सम्मत इंसान की अस्मिता अर्जित करने का मुहावरा है। मुहावरा समझने के लिए दिमाग लगाने की जरूरत पड़ती है। बाभन से इंसान बनने को भूमिहार, ठाकुर, अहिर... या हिंदू मुसलमान से इंसान बनना भी कहा जा सकता है। जरूरी नहीं सभी मुहावरे को चरितार्थ करें, जो इंसान न बनना चाहे उनपर कोई दबाव नहीं है। लिखे पर बोलने की बजाय अलिखे की शिकायत करना थेथरई है जिसे आम भाषा में टुच्चई भी कहा जा सकता है। सादर।

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