Saturday, May 29, 2021

बेतरतीब 102 ( विवाह पुराण 4)

 पत्नी और बेटियों के साथ 6साल पहले फरहत की खीची एक तस्वीर पर यह इंट्रो लिखा कि तस्वीर गायब हो गयी और फोटोज में खोजने पर भी नहीं मिल रही है।


यह तस्वीर मेरे 60वें जन्मदिन (2015) की है, जिसे मैं अपने और सरोज जी की शादी के 49वीं सालगिरह (2021) पर शेयर कर रहा हूं। वैसे शादी के पहले, शादी के समय या उसके बाद लगभग 3 साल तक हमलोगों ने एक-दूसरे को देखा ही नहीं था। 1972 में जब मैं इंटरमीडिएट की परीक्षा देकर जौनपुर से घर आया तो पता चला कि शादी का कार्ड छप चुका था। विद्रोह के प्रयास की असफलता के बाद शादी निभाने का फैसला अपनी मर्जी से किया। गभग 3 साल (2साल 9 महीने) बाद 28 फरवरी 1975 को जब हमारा गवन हुआ तो मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ता था और आपातकाल में भूमिगत रहने तथा रोजी-रोटी की संभावनाओं की तलाश में दिल्ली आ गया और 1977 में आपातकाल के बाद जेएनयू में प्रवेश लिया। विवाह के बाद अपरिहार्य कारणों से लंबे समय तक हम लोग मैरिड बैचलर की ही तरह रहे, छुट्टियों में घर जाने पर हमारी मुलाकातें होती थीं। मेरी बड़ी बेटी जब 4 साल की हो गयी तब से हम साथ रह रहे हैं और साथ रहते हुए अब हमें 33 साल हो गए।


1 comment:

  1. परसों से ही साल गिरह की इतनी बधाइयां मिलीं कि दिल बाग बाग हो गया। कई मित्रों ने मेरी किसी तस्वीर के साथ बधाई की पोस्ट्स शेयर किया। आप सब के प्यार की बधाइयों से मन फूलकर कुप्पा हो गया। आप सब का बहुत बहुत हार्दिक आभार।
    पिछले कुछ सालों से, इस अवसर पर अपने विवाह के बहाने उस समय के विवाहों के समाजशास्त्र पर कुछ-न-कुछ लिखता आ रहा हूं। इस बार भी परसों से ही लिखने की सोच रहा हूं, लेकिन कोविद के इस कठिन काल की खबरों से मन इतना उद्विग्न है कि कलम को मुखर बनाने की दिमागी एकाग्रता ही नहीं बन पाईष लेकिन आज उसे बनना ही पड़ेगा। तब तक के लिए एक मित्र ने 2019 में छोटी बेटी के शादी के समय की तस्वीर और 2015 में फेसबुक पर आभार की मेरी पोस्ट के कथ्य के साथ बधाई की पोस्ट डाला, उसे शेयर कर रहा हूं।

    ReplyDelete