और देशों में भी विषमताएं हैं लेकिन किसी अन्य देश में जन्म (जाति) आधारित विषमता नहीं है। यूरोप में जन्मआधारित सामाजिक विभाजन नवजागरण और प्रबोधन (Renaissance & Enlightenment) क्रांतियों के दौरान समाप्त हो गया था, भारत में ऐसी क्रांतियां अभी बाकी हैं। जातिवाद हमारे समाज की एक वीभत्स सच्चाई है जिस पर परदा डालकर नहीं, जिसे उजागर कर ही उसका विनाश किया जा सकता है। जाति के विनाश के बिना क्रांति नहीं, क्रांति के बिना जाति का विनाश नहीं। मुर्गी अंडे के द्वंद्वात्मक संबंधों में द्वंद्वात्मक एकता की जरूरत है। जाति प्रमाणपत्र जारी करने या न जारी करने से जातिवाद खत्म नहीं होगा, जातिवाद सामाजिक चेतना के जनवादीकरण से खत्म होगा।
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