कुछ लोग विदेशी आक्रमणों के लिए बुद्ध के अहिंसा की शिक्षा को जिम्मेदार मानते हैं। इसी तरह के एक सज्जन ने एक पोस्ट में बुद्ध की शिक्षा को विदेशी आक्रमणों और 'हजार साल की गुलामी' का जिम्मेदार बताया। उस पर :
हजार साल की गुलामी कब से मानते हैं? 2000 साल से भी पहले से बौद्ध क्रांति के विरुद्ध पुश्यमित्र से शुरू ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति 1300 साल पहले शंकराचार्य तक पहुंचते पहुंचते अपनी तार्किर परिणति तक पहुंच चुकी थी, शाखा के बौद्धिक का अफवाहजन्य कुज्ञान फैलाकर समाज को प्रदूषित न करें। बुद्ध अहिंसक जीवन शैली के प्रवर्तक थे, देश और समाज के सुरक्षातंत्र के भी समर्क थे। अपराधियों को कड़ी-से-कड़ी सजा के सिद्धांत के प्रवर्तक थे जो लोगों को अपराध करने से हतोत्साहित करने की मिशाल बने। राज्य के बौद्ध सिद्धांत के लिए कृपया दीघ निकाय और अनुगत्तरा निकाय पढ़ें ऑनलाइन उपलब्ध हैं। राज्य की उत्पत्ति का बौद्ध सिद्धांत, दैविक नहीं, सामाजिक संविदा का सिद्धांत है तथा राज्य के प्रचीनतम सिद्धांतों मे एक है। अशोक, कनिष्क, हर्षवर्धन जैसे बौद्ध शासकों की गणना प्रचीन भारत के पराक्रमी सम्राटों में होती है। राज्यों की पराजय और समाज के पतन का कारण बौद्ध नहीं वर्णाश्रमी संस्कृति रही है। जिस समाज में शस्त्र और शास्त्र का अधिकार मुट्ठीभर लोगों को ही हो तथा कारीगर और श्रमजीवी बहुजन (शूद्र) को मनुष्यत्व के अधिकार से वंचित रखा जाता हो, उस समाज को नादिरशाह जैसा चरवाहा भी 2000 घुड़सवारों के साथ पेशावर से बंगाल तक रौंद-लूट कर वापस जा सकता है और और हमारे शूरवीर भजन गाते रह जाते हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान औपनिवेशिक दलाल आंदोलन के गुरुत्व को कम करने के लिए हजार साल की गुलामी का भजन गाने लगे। पहले राज्य तलवार के बल पर स्थापित होते थे और तलवार के धनी महान शासक माने जाते थे चाहे वह सिकंदर हो या अशोक, समद्रगुप्त हो या अकबर। अंग्रेज विजेता अलग थे, वे तलवार से राज्य स्थापित करने नहीं बल्कि गुलाम मानसिकता के हमारे ही पूर्वजों को वर्दी पहनाकर, जमींदार या बाबू बनाकर उन्ही के बल पर हमें गुलाम बनाकर लूटने आए थे और 200 साल तक लूटते रहे। मध्ययुग में विदेशी आक्रांताओं के समक्ष देशी राजाओं की पराजय का कारण बुद्ध की शिक्षा नहीं वर्णाश्रमी व्यवस्था थी।
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