यह तो पंडीजी के प्रवचन किस्म का अमूर्त आख्यान हो गया। 5हजार साल पहले यहां के निवासियों में तो आदिवासी और द्रविणही बचे हैं। सिंधु सभ्यता के वारिश कौन हैं? विवादित मामला है, वैदिक आर्य तो लोकमान्य तिलक समेत तमामा पुरातत्ववादियों के अनुसार 4000 साल पहले आए तथा 1500 ईशापूर्व तक आर्यव्रत सप्तसैंधव ( पंजाब की 5 नदियों समेत सिंधु-सरस्वती का क्षेत्र) में ही रहे तथा सरस्वती के सूखने के बाद पूरब बढ़े। अफवाहजन्य इतिहासबोध ही इस वैविध सभ्यता को संघी एकरसता में विकृत करता है। संवैधानिक जनतंत्र में संविधान के प्रति निष्ठा ही राष्ट्रवाद (भारतीयता) है और उसका उल्लंघन राषाट्रद्रोह (अभारतीयता) है। जो भी धर्मनिरपेक्षता समेत संविधान के प्राक्कथन के प्रावधानों का उल्लंघन करता है वह राष्ट्रद्रोही यानि अभारतीय है।
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