शरीर के सुख के रूप में भौतिकवाद की व्याख्या भौतिकवाद का माखौल उड़ाने सा है। ब्राह्मणवाद ने चारवाक के दर्शन की अवमानना के लिए उनके नाम से यावत् जीवेत् सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा घृतम् पीवेत की किंवदंति प्रचलित की। भौतिकवाद का मूल है कि सभी घटनाओं-परिघटनाओं, सांस्कृतिक मान्यताओं का आधार अमूर्त विचार नहीं मूर्त भौतिक विश्व है। द्वंद्वात्मक भौतिकवाद घटनाओं-परिघटनाओं, मान्यताओं की व्याख्या भौतिक परिस्थितियों और उनसे उत्पन्न विचारों में एकता के रूप में करता है। मोक्ष की अवधारणा को शोषण-दमन से मुक्त मानव मुक्ति का मार्क्सवादी अवधारणा के प्राचीन संस्करण के रूप में समझा जा सकता है। मैं अपने छात्रों को द्वंद्वात्मक भौतिकवाद न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की मिसाल से समझाता था। सेब तो न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के आविष्कार के पहलेन भी गिरते थे। लेकिन इस भौतिक परिघटना के अवलोकन से हम क्या का जवाब दे सकते थे। क्यों और कैसे का नहीं। इस भौतिक परिघटना के अवलोकन से न्यूटन के दिमाग में क्यों और कैसे के सवाल पैदा हुए जिनका जवाब उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत में खोजा। संपूर्ण सत्य का गठन सेव गिरने की भौतिकता और उससे निकले गुरुत्वाकर्षण के सिद्केधांत के विचार की द्वंद्वात्मक एकता से होता है। इससे वस्तु की विचार से श्रेष्ठता नहीं, प्राथमिकता साबित होती है।
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