न हिंदू जहर फैलाता है न मुसलमान, दोनों ही किस्म की सांप्रदायिक ताकतें जहर फैलाती हैं। हिंदू-मुसलमान नरेटिव अपनेआप में जहर फैलाने की मुहिम है। यहां हिंदू-मुसलमान की बात ही नहीं की गयी है, दाढ़ी में तिनकेकी अनुभूति अपने आप में सांप्रदायिक प्रवृत्ति का द्योतक है। मुल्क का आवाम जब भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में संघर्,रत था तब औपनिवेशिक शासकों की शह पर बनी-बढ़ी सांप्रदायिक ताकतें भारतीय राष्ट्रवाद के विरुद्ध हिंदू-राष्ट्र और निजामे इलाही के नाम पर समाज में सांप्रदायिक नफरत का जहर फैलाकर औपनिवेशिक दलाली कर रही थीं। हिंदू तो कोई होता नहीं ऊंची-नीची जातियों के अंतर्विरोध को ढंकने के लिए हिंदुत्व का शगूफा छोड़ा जाता है। इस ग्रुप में ही लोगों के जातिवादी पूर्वाग्रह देख लीजिए कुछ लोगों को जातीय प्रवृत्तियोॆ के दुराग्रह और आरक्षण के नाम पर नीचा दिखाने की कोशिस की जाती है। इसीलिए यहां धर्म ही नहीं जाति के नाम पर भी विद्वेष न फैलाने का आग्रह किया गया है। सभी से आग्रह है कि बाभन-अहिर और हिंदू-मुसलमान से ऊपर उठकर विवेकशील इंसान के रूप में विमर्श में शिरकत करें। सौहार्द से समाज और मुल्क आगे बढ़ेगा नफरत से टूटेगा।
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