Wednesday, September 14, 2016

मार्क्सवाद 32

Pawel Parasharउपरोक्त सभी लेखों और अन्यत्र भी मैंने रेखांकित किया है कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टियां, यद्यपि जातीय उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्षों की अगली पंक्तियों में रहीं, लेकिन मार्क्सवाद को समाज समझने-बदलने के विज्ञान की बजाय मिशाल के तैर पर अपना लिया. मार्क्स जब यूरोपीय समाज के बारे में लिख रहे थे तब तक वहां समाज का विभाजन शुद्ध आर्थिक आधार पर था. जन्मआधारित विभाजन बुर्जुआ डेमोक्रेटिक क्रांति ने समाप्त कर दिया था. यहां ऐसी कोई क्रांति हुई नहीं. इसलिए यह अपरिपूर्ण काम एजेंडे में प्राथमिकता पर होना चाहिए था, जिसे पेरियार और अंबेडकर ने प्राथमिकता दी. मैं किसी कम्यनिस्ट पार्टी में नहीं हूं, मार्क्सवादी हूं और यह किसी पार्टी की निंदा नहीं बल्कि आत्मालोचना है, जो मार्क्लवाद की मूलभूत अवधारणाओं में से एक है. बहुत मुश्किल से यह विलंबित एकता स्थापित हुई है, इसे मजबूत करने की जरूरत है, तोड़ने की नहीं. मिलकर हम बहुत मज़बूत हैं. इस पर एक पुस्तक लिखने की कोशिस कर रहा हूं. अंबेडकर के विचारों पर किसी एक देश-काल या संगठन का एकाधिकार नहीं है. हर तरह के शोषण दमन के विरोधी ,अंबेडकर जातिवाद के विनाश के पक्षधर थे, प्रति-जातिवाद के नहीं; वे ब्राह्मणवाद के विनाश के पक्षधर थे नवब्राह्मणवाद के नहीं. मित्र हम इतिहास के एक अंधे दौर से गुजर रहे हैं, मिलकर लड़ने की जरूरत है, आपस में लड़ने की नहीं. संघर्षों की एकता से ही वैचारिक एकता निकलेगी.

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