बहुत सुंदर विश्लेषण कॉ. शिखा. मैंने भूमंडलीकरण के शुरुआती दिनों में एक लेख में यही कहा था कि यूरोप में कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पूंजीवाद की डूबती नैया पार लगाने के साधन के रूप विकसित हुई, लेकिन भारत जैसे उपनिवेशवाद से ताजा ताजा छूटे देशों में में पूंजीवाद था ही नहीं. मनमोहन सिंह ने पता नहीं कहां से अर्थशास्त्र पढ़ा है कि उन्हें अंग्रेज प्रभुओं का मुल्क के "विकास" के लिए आभार व्यक्त करना पड़ा. 19वीं शदी की शुरुआत तक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का मतलब था, भारतीय और पूर्वी एसिया, प्रमुखतः चीनी माल का व्यापार. 1947 में भारतीय अर्थव्यवस्था में औद्योगिक योगदान 6.7% था. सही कह रही हो कि प्रमुखतः अफीम तस्करी के 'तथाकथित आदिम संचय' से देसी पूंजीपति अस्तित्व में तो आगए थे लेकिन न तो विशाल औद्योगिक इन्फ्रास्ट्रकचर विकसित करने की औकात थी न मनसा. पूंजीवादी देशों के उलट इन देशों में कल्याणकारी राज्य (मिश्रित अर्थव्यवस्था) अनुपस्थिकत पूंजीवाद को बचाने के लिए नहीं पूंजीवाद स्थापित करने का साधन बना. कांग्रेस और भाजपा ने आमजन के खून पसीने की कमाई से खड़े प्रतिस्ठानों को औने-पौने दाम में अपनी अपनी पारी में बारी-बारी बेटते जा रहें हैं. साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी की दलाली में दोनों में कड़ी प्रतिद्वंदिता है.
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