Markandey Pandey लक्षणा में कहें तो लोग टोकरी में मार्क (जर्मन करेंसी) भरकर सब्जी खरीदने जाते थे. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वर्साइल संधि के तहत, कुछ भौगोलिक क्षेत्रफल विजेता को देने के बादजूद युद्ध क्षतिपूर्ति में तबाह हो गया था. संकट में फासीवाद का उदय आसान होता है. लोगों की दुर्गति के लिए एक काल्पनिक दुशमन की जरूरत थी सो हिटलर ने यहूदियों में ढूंढ़ लिया जैसे संघी आतताइयों ने मुसलमानों में ढूढ़ा है. वैसे जंग मे कोई विजयी नहीं होता, तथाकथित विजयी भी अपने मुल्क की तबाही पर ही जश्न मनाता है, नेट से शाहिर की नज़्म खोज कर पढ़िए, 'खून अपना हो या पराया, नस्ल-ए-आदम का खून होता है................. इसलिए ऐ शरीफ इंसानों/जंग टलता रहे तो बेहतर है/हमारे-आपके-सबके घरों में चिराग़ जलता रहे तो बेहतर है.
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