Sunday, September 4, 2016

ये जो सीधी-सादी दिखती लड़की है


बेटी की एक तस्वीर पर

ये जो सीधी-सादी दिखती लड़की है

जोर-ज़ुल्म की हो बात अगर 
शेरनी सी दहाड़ती है
चेहरे पर छिटकी है जो विनम्र मुस्कान
छिपा है उसमें फौलादी आत्म सम्मान
देता है बाप अगर कभी बर्दाश्तगी प्रवचन
याद दिलाती उसे नाइंसाफी की मुखालफत का वचन
सिखाओगे ग़र दो साल की बच्ची को जंग-ए-आजादी का गाना
कैसे लिखेगी वो समझौतों का अफसाना?
सिखाओगे बचपन में ग़र मेहनतकश के हक़ का तराना
कैसे लिखेगी वो निज़ाम-ए-ज़र की शेनां?
कहोगे ग़र उससे कि सवाल-दर-सवाल है ज्ञान की कुंजी
कैसे संभाल सकती है वो किसी परंपरा की पूंजी?
सवाल-दर-सवाल की पड़ जाती है जब आदत
कैसे कर सकती है किसी 'ईश' की इबादत?
कर देती बाप को इस बात से लाजवाब
लगाओगे पेड़ बबूल का कहां से फलेगा वो आम जनाब?
(कलम का आवारगी में 'धृतराष्टत्व' का भूत)

(ईमिः 04.09.2016).....

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