प्रिय मित्र दिलीप (Dilip C Mandal), किसी पोस्ट में तुमने वाम मोर्चे के उम्मीदवारों की जाति का जिक्र किया है. मुझे बापसा के बच्चे उतने ही प्रिय हैं जितने वाम के बल्कि संशोधनवादी वाम से अधिक. मैं राष्ट्रवाद की कक्षाओं में एक क्लास की सिफारिश दोनों ही प्लेटफॉर्म के माइक मैनेजरों से की थी लेकिन शायद उनकी पार्टी लाइन के विपरीत था. बमुश्किल जय भीम- लाल सलाम के नारे को मजबूत करने की बजाय तुम्हारा लेखन उसे तोड़ने का था. मैंने बहुत प्रयास किया कि संघर्षों की एकता चुनाव में भी कायम रहे, लड़ाई भले ही एकतरफा हो जाती. तुम इतने लोकप्रिय हो कि तुम्हारे साथ मिलकर यह काम आसान हो जाता. काउंटिंग के समय मैं रिजल्ट पोस्ट करता था तो लिखता था वाम& वापसा = ... ABVP =.. . मैं अध्यक्षीय भाषण के वक्त कैंपस में था तथा उज्ज्वल दा (Ujjwal Bhattacharya) से पूर्णतः सहमत हूं कि राहुल का भाषण और उससे परिलक्षित सोच सर्वोत्तम थी. मैंने लाल और भगवा को साथ रखने पर और स्टैंडविद जेयनयू को स्टैंड विद जनेऊ के नारों पर विरोध दर्ज किया था. राहुल के जीतने पर भी मुझे उतनी ही खुशी होती. इतने वोटों में उसके भाषण का भी योगदान है. निजी रूप से मैं बासो के छात्रों को ज्यादा करीब पाता हूं. हम बुजुर्गों का (तुम तो बुजुर्ग नहीं हो, लेकिन चलो मान लेते हैं) दायित्व है कि इस नई एकता को मजबूत करें तथा उसके लिए सैद्धांतिक आधार तैयार करें. मैंने लिखा है कि एंगेल्स की कसौटियों पर खास परिस्थि में मार्क्स की तरह प्रतिक्रिया देने के अर्थों में अंबेडकर मार्क्सवादी थे. मार्क्सवाद और अंबेडकरवाद का अंतर्विरोध शत्रुतापूर्ण नहीं है और संघर्षों की एकता में समाप्त होगा. फोन खराब होने से तुम्हारा नंबर गायब हो गया है. इनबॉक्स कर सको तो अच्छा लगेगा. मेरा तुमसे अंतर्विरोध मित्रतापूर्ण है, इसीलिए व्यक्त कर देता हूं.
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