Friday, September 2, 2016

शिक्षा और ज्ञान 75

Markandey Pandey आपने मनोज तिवारी का कमेंट पढ़ा? मुझे नहीं दिख रहा, लेकिन आप उसे फिर से पढ़ें और मेरी जगह खुद को रख कर देखें. भाई मैं जो कह रहा हूं उसका खंडन मंडन कीजिए. मेरे बुढ़ापे का मेरी बातों से क्या लेना है जैसे कि आप तो चिरयौवन हों! मेरे मरने की बात ऐसे कर रहे हैं जैसे वे देवताओं की तरह अमृत की घरिया पीकर आए हों और जैसे कि उनको मालुम है कि वे मुझसे पहले नहीं मरेंगे? अरे भाई मनुष्य ही नहीं पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद समेत जिसका भी अस्तित्व है, उसका अंत निश्चित है. मौत सबकी निश्चित है, कौन कब मरेगा कोई नहीं जानता. मेरा एक होनहार भाई 22 की उम्र में हत्या का शिकार हुआ, आजतक उस ग़म से निज़ात नहीं मिल सकी है. किसी की मौत का जश्न, दुश्मन ही क्यों न हो, मनाने वाला इंसान नहीं हो सकता. मैं बार बार कह चुका हूं कि सफेद दाढ़ी के बावजूद मैं इंसान हूं, देवता नहीं. आम इंसान की ही तरह मुझे भी गाली-गलौच बर्दास्त नहीं और एक साधारण इंसान की तरह बेहूदी गालियों पर गुस्सा भी आता है. जैसा कि मैं अपनी कमजोरी बता चुका हूं कि गुस्से में मैं भूल जाता हूं कि मैं 41 साल पहले 20 का था और उन्ही की भाषा में जवाब दे दूं तो आप सब उम्र की याद दिलाने लगेंगे. इससे बेहतर है कि ऐसे विद्वानों को अदृश्य ही कर दो. आपने देखा नहीं, चुंगी पर एक विद्वान ने कहा कि मैं देशद्रोही हूं क्योंकि मैं उर्दू शब्दों का भी प्रयोग करता हूं. ऐसे ज्ञानियों से क्या संवाद हो सकता है, वे अदृश्य ही रहें, तो बेहतर है.

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