Monday, September 5, 2016

शिक्षा और ज्ञान 86 (नौकरी)

1970 के दशक के शुरुआती दिनों में इलाहाबाद विवि में वामपंथी छात्र आंदोलन से जुड़ते ही, हम 70 के दशक को मुक्ति का दशक बताते हुए दीवारों पर पर नारे लिखते हुए हमें लगने लगा था कि क्रांति दूर नहीं है. हमारी खुशफहमियां और उम्मीदें निराधार नहीं थीं. चीनी क्रांति, अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन, क्यूबा, फ्रांस की 'मई क्रांति' 1960 के दशक में यूरोप के विभिन्न देशों में क्रांतिकारी उफान, नक्सलबाड़ी, वियतनाम में अमेरिकी पराजय, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन सब अच्छे संकेतक थे. लेकिन आपातकाल में स्पष्ट हो गया कि क्रांति चौराहे पर नहीं है. आजीविका के लिए श्रम बेचने को तो हम सब अभिशप्त हैं ही, मुधे लगा कि शिक्षक की नौकरी है जिसमें एलीनेसन कम किया जा सकता है और अंशतः छात्रों को थोड़ा 'बिगाड़कर' ऐक्टिविज्म की भरपाई हो सकती है. लेकिन रंग ढंग ठीक किया नहीं. 17-18 की उम्र तक प्रामाणिक हो गया था जब गॉडवै नहीं तो गॉडफादर कहां से होता. संघर्षों से सर उठा के चलने की आदत पड़ गई, सर झुकाकर सर बनना कबूल नहीं था. कई संयोगों के टकराव की दुर्घटना में नौकरी मिल गई. लोग कहते हैं तुम्हें देर से नौकरी मिली, मैं ईमानदारी से कहता हूं सवाल उल्टा है, मिल कैसे गई. वाम-मध्य-दक्षिण नौकरी के सब ठेकेदार फ्रोफेसर नाराज़ थे. अपने 14 साल विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के इंटरविवों की कभी फुर्सत मिली तो एंथॉलॉजी लिखूंगा. खैर भूमिका लंबी हो गयी. मैं वाकई सौभाग्यशाली मानता हूं पेशे से भी शिक्षक बन कर, तेवर से तो वैसे भी था. मेरे ज्यादातर विद्यार्थी मुझे गर्व का मौका देते हैं. मैं बड़े आत्मविश्वास से कहता हूं मेरे छात्र थोड़ा अलग होंगे तर्कशील नैतिकता के मामले में, और अपवाद नियम की पुष्टि करते हैं. कई बार मजाक में सोटता हूं कि थोड़ा रंग-ढंग ठीक कर लेता तो 10-12 बैच ज्यादा स्टूडेंड्स 'बिगाड़ता'. लेकिन अब सोचने से क्या फायदा? हा हा. हर शौक की कीमत चुकानी पड़ती है, झुककर चलने वाली दुनियां मे सर उठाकर चलने की कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी. लेकिन सिर उठाकर चलने के सुख और फक्र की कोई भी कीमत कम ही है. मेरा मानना है कि पढ़ाने का सुख ही असली मजदूरी है, वेतन बोनस. ज्यादातर अभागे हैं बोनस के लिए ही काम करते हैं, वेतन छोड़ देते हैं. मुझे लगता है यदि 20-25% शिक्षक भी शिक्षक होने का महत्व समझ लें तो क्रांति का आधा रास्ता वैसे ही प्रशस्त हो जाये. लेकिन जैसा मैंने कहा, ज्यादातर अभागे हैं, नौकरी करते हैं. अपने सभी छात्र मित्रों को शुभ कामनाएं. कई और काम हैं लेकिन आज सोचा शिक्षक दिवस पर ही लिख दूं. और कई चीजें लिखना चाहतान हूं. अलग पोस्ट में.

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