विषयांतर विमर्श विकृक करने की पुरानी संघी चाल हैं. पढ़ते-लिखते हैं नहीं, विषय पर बेचारे बोल नहीं पाते जो रटे होते हैं, वही जुगाली करते रहते हैं. गोरक्षा पर किसी की पोस्ट पर एक सज्जन ने कहा कि मैं गुजरात पर बोलता हूं पंडितों पर नहीं; Umar Khalid के साथ खड़ा होता हूं, Taslima Nasrin के साथ नहीं और भी जो आया. उस पर
हमारी 2011 की रिपोर्ट में कश्मीरी हिंदुओं पर एक अध्याय है. हमने हमेशा अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले का विरोध किया. कलकत्ता में सीपीयम की चिरकुट लोकलुभावन चुनावी गणना से बंगाल में तस्लीमा को सुरक्षित न रहने देने के लिए ईपीडब्लू और तीसरी दुनिया में लेख लिखा था. सलमान रश्दी की सैतनिक वर्सेज उनकी पहले के उपन्यास मिडनाइट चिल्ड्रेन की तुलना में दोयम दर्जे की है, खोमैनी के फतवे और पाबंदी की वजह से जुगाड़ करके मंगाया. कोई छापने को राजी नहीं था, स्वामी अग्निवेश क्रांतिधर्मी निकालते थे. उसमें छपा. आप मैं क्या करता हूं हिसाब ही मांगते रहेंगे कि खुद भी कुछ करेंगे. मुझे जिस काम की जब प्राथमिकता लगेगी वह करूंगा, आपको हर काम का हिसाब दूं? जयरामजी की. यह अंतिम जवाब है.
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